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निर्वाह इतना सुगम था कि थोड़ेसे परिश्रममें ही मनुष्य स्वतंत्रता पूर्वक आनन्दसे जीवन व्यतीत करता था और साथ ही साथ शेप
समयमें परमात्मोपासनामें अयवा अपने आत्म. विकाशमें व्यय करता था।
जनधर्मन मोक्षामिलापी जीवात्माओंके लिए दो तरहके चारित्रका निरूपण किया है। (१) मुनिधर्म। (२) गृहस्थधर्म । मुनिधर्मकी विषमता और चारित्रसी निमलता इसीसे विदित है कि उसमें उसी भवसे मोक्षप्राप्तिका प्रयत्न किया जाता है और गृहस्थ धर्म उन आत्माओंके लिए है जो मुनि धर्म धारण करनेमें असमर्थ हैं। ___ अतः जनधर्मका आधुनिक सभ्यतासे प्रबंध होने पर किसी प्रकारकी भी क्षति उसके किसी अंगको प्राप्त नहीं हो सकी है सुतरां इससे