________________
प्रकाशकीय
जैन-धर्म की हजार शिक्षाएं" का प्रकाशन करते हुए अतीव हर्ष हो रहा है। मुनिश्री हजारीमल स्मृति--प्रकाशन का यह प्रकाशन पंद्रहवाँ सुरभित सुमन है ।
यह संकलन अतीव श्रम-पूर्वक तैयार किया गया है। इसके संकलन में श्रद्धय श्री मधुकर मुनिजी को अनेक आगम व ग्रन्थों का अवलोकन करना पड़ा है।
हमें प्रसन्नता है कि साहित्य व दर्शन के विद्वान श्रीयुत् श्रीचंद जी सुराना 'सरस' का सर्वतोमुखी सहयोग मुनिश्रीजी को मिला है। यही कारण है कि अतीव अल्प समय में यह प्रकाशन सुन्दर रूप में जन-जन के कर-कमलों में पहुंच पाया है।
अपने मनोमुग्धकारी प्रकाशनों के कारण 'मुनिश्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन' ने अच्छी ख्याति प्राप्त की है । तथा पाठकों का स्नेह व आकर्षण भी प्राप्त किया है। हमारे अन्य प्रकाशनों की तरह यह प्रकाशन भी जनता को अधिक रुचिकर होगाऐसा हमें पूर्ण विश्वास है।
जिन अर्थ-सहयोगियों ने इस प्रकाशन में अर्थ-सहयोग दिया है, उनका भी हम आभार मानते हैं। समय समय पर अर्थ