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मेघ की तरह दानी भी चार प्रकार के होते हैं
कुछ बोलते हैं, देते नहीं ।
कुछ देते हैं, किन्तु कभी बोलते नहीं ।
कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं ।
और कुछ न बोलते हैं, न देते हैं ।
जैनधर्म की हजार शिक्षाएँ
देवे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति । देवे णममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति । रक्खसे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति । रक्खसे णाम मेगे रक्खसीएसद्धि संवासं गच्छति ।
चत्तारि कुभेमधुकुभे नामं एगे मधुकुमे नामं एगे विसकुभे नाम एगे विसकुभे नामं एगे
चार प्रकार के सहवास है
देव का देवी के साथ -- - शिष्ट भद्र पुरुष, सुशीला भद्र नारी । देव का राक्षसी के साथ - शिष्ट पुरुष, कर्कशा नारी । राक्षस का देवी के साथ - दुष्ट पुरुष, सुशीला नारी । राक्षस का राक्षसी के साथ - दुष्ट पुरुष, कर्कशा नारी ।
- स्थानांग ४|४
मधुपिहाणे । विसपिहाणे । मधु पिहाणे । विसपिहाणे ।
चार प्रकार के घड़े होते हैं
मधु का घड़ा, मधु का ढक्कन ।
विष का ढक्कन ।
मधु का घडा विष का घड़ा, मधु का ढक्कन ।
विष का घड़ा, विष का ढक्कन ।
[ मानव पक्ष में हृदय घट है और वचन ढक्कन ]
- स्थानांग ४|४