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________________ २२८ मेघ की तरह दानी भी चार प्रकार के होते हैं कुछ बोलते हैं, देते नहीं । कुछ देते हैं, किन्तु कभी बोलते नहीं । कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं । और कुछ न बोलते हैं, न देते हैं । जैनधर्म की हजार शिक्षाएँ देवे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति । देवे णममेगे रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति । रक्खसे णाममेगे देवीए सद्धि संवासं गच्छति । रक्खसे णाम मेगे रक्खसीएसद्धि संवासं गच्छति । चत्तारि कुभेमधुकुभे नामं एगे मधुकुमे नामं एगे विसकुभे नाम एगे विसकुभे नामं एगे चार प्रकार के सहवास है देव का देवी के साथ -- - शिष्ट भद्र पुरुष, सुशीला भद्र नारी । देव का राक्षसी के साथ - शिष्ट पुरुष, कर्कशा नारी । राक्षस का देवी के साथ - दुष्ट पुरुष, सुशीला नारी । राक्षस का राक्षसी के साथ - दुष्ट पुरुष, कर्कशा नारी । - स्थानांग ४|४ मधुपिहाणे । विसपिहाणे । मधु पिहाणे । विसपिहाणे । चार प्रकार के घड़े होते हैं मधु का घड़ा, मधु का ढक्कन । विष का ढक्कन । मधु का घडा विष का घड़ा, मधु का ढक्कन । विष का घड़ा, विष का ढक्कन । [ मानव पक्ष में हृदय घट है और वचन ढक्कन ] - स्थानांग ४|४
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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