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न कया वि मणेण पावएणं पावगं किंचि वि झायव्वं । वईए पावियाए पावगं न किंचि वि भासियव्वं ॥ मन से कभी भी बुरा नहीं सोचना चाहिए। वचन से कभी भी बुरा नहीं बोलना चाहिए ।
(पृष्ठ १२६८) सद्धा खमं णे विणइअत्तु रागं । धर्म-श्रद्धा हमें राग (आसक्ति) से मुक्त कर सकती है।
(पृष्ठ १५११७) वरं मे अप्पा दंतो, संजमेण तवेण य ।
माहं परेहिं दम्मंतो बंधणेहिं वहेहि य ।। दूसरे वध और बंधन आदि से दमन करें, इससे तो अच्छा है कि मैं स्वयं ही संयम और तप के द्वारा अपना (इच्छाओं का) दमन कर लू।
(पृष्ठ १६६७) कामासक्तस्य नास्ति चिकित्सितम् । कामासक्त व्यक्ति का कोई इलाज नहीं है। अर्थात् काम-रोग की कोई चिकित्सा नहीं है।
(पृष्ठ १८४।१८) खीरे दूसिं जधा पप्प, विणासमुवगच्छति ।
एवं रागो व दोसो य, बंभचेर विणासणो । जरा-सी खटाई भी जिस प्रकार दूध को नष्ट कर देती है, उसी प्रकार राग-द्वेष का संकल्प संयम को नष्ट कर देता है।
(पृष्ठ १९८।१२)