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________________ जैनधर्म की हजार शिक्षाएं ५. भूयत्थमस्सिदो खलु, सम्माइट्ठिी हवइ जीवो। -समयसार ११ जो भूतार्थ अर्थात् सत्यार्थ-शुद्धदृष्टि का अवलम्बन करता है, वही सम्यग्दृष्टि है। ६. अप्पा अप्पम्मि रओ, सम्माइट्ठी हवेइ फुडुजीवो । -भावपाहुड ३१ जो आत्मा, आत्मा में लीन है, वही वस्तुतः सम्यग्दृष्टि है। नादसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुति चरणगुणा। अगुणिस्स णत्थि मोक्खो, णत्थि अमोक्खस्स णिवाणं ।। -उत्तराध्ययन २८१३० सम्यग्दर्शन के अभाव में ज्ञान प्राप्त नहीं होता, ज्ञान के अभाव में चारित्र के गुण नहीं होते, गुणों के अभाव में मोक्ष नहीं होता और मोक्ष के अभाव में निर्वाण (शाश्वत-आत्मानन्द) प्राप्त नहीं होता। नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहूण। -उत्तराध्ययन २८२६ सम्यक्त्व (सत्यदृष्टि) के अभाव में चारित्र नहीं हो सकता। समद्दिट्ठिस्स सुयं सुयणाणं, मिच्छद्दिस्सि सुयं सुय अन्नाणं । -नन्वीसूत्र ४४ सम्यग-दृष्टि का श्रुत-श्र तज्ञान है। मिथ्यादृष्टि का श्रुत-श्रुत अज्ञान है । १०. सम्मत्तदंसी न करेइ पावं। -आचारांग ११३२
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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