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पूरी सामग्री को उन्होंने दो भागों में विभाजित किया है। प्रथम खण्ड में उन्होंने नीति-सम्बन्धी वचन दिए हैं, दूसरे खण्ड में अध्यात्मविषयक ! इन दोनों भागों में उन्होंने ऐसी मंदाकिनी प्रवाहित की है, जिसमें अवगाहन करके बड़ी शीतलता तथा धन्यता अनुभव होती है । कुछ वचनामृत देखिए
विणएण णरो, गंधेण चंदणं सोमयाइ रयणिरो। महुररसेण अमयं, जणपियत्तं लहइ भुवणे ।। जैसे सुगन्ध के कारण चंदन, सौम्यता के कारण चन्द्रमा और मधुरता के कारण अमृत जगत्प्रिय हैं, ऐसे ही विनय के कारण मनुष्य लोगों में प्रिय बन जाता है ।
(पृष्ठ १२।२१) तुमंसि नाम तं चेव जं हंतव्वं ति मन्नसि । तुमंसि नाम तं चेव जं अज्जावेयव्वं ति मन्नसि ।
तुमंसि नाम तं चेव जं परियावेयव्वं ति मन्नसि । जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है । जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है। जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह तू ही है। [स्वरूपदृष्टि से सब चैतन्य एक समान है—यह अद्वैतभावना ही अहिंसा का मूलाधार है ।]
(पृष्ठ ३३३११) सच्चं लोगम्मि सारभूयं, गम्भीरतरं महासमुद्दाओ। संसार में सत्य' ही सारभूत है। सत्य महासमुद्र से भी अधिक गंभीर है।
(पृष्ठ ४५।१२)