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भूमिका
कहा जाता है कि इस धरा पर मानव जीवन दुर्लभ है । यह भी कहा जाता है कि संसार के समस्त प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी 'मनुष्य' है । वस्तुत: यह मान्यता इसलिए है कि मनुष्य में विवेक होता है, वह भले-बुरे के बीच भेद कर सकता है और सन्मार्ग पर चलने की क्षमता रखता है । अपने इस गुण के कारण ही वह अन्य जीवधारियों की तुलना में ऊंचे स्थान का अधिकारी माना गया है ।
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लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे व्यक्तियों की संख्या नगण्य है - जिनका विवेक सतत जागरूक रहता हो और जो आत्म-कल्याणकारी एवं लोकहितकारी मार्ग का निरन्तर अनुसरण करते हों । सत्य बात यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के अन्तर में सद् और असद् दो प्रकार की वृत्तियां होती हैं । यह वृत्तियां आपस में बराबर संघर्ष करती रहती हैं । उस संघर्ष में जिस वृत्ति की विजय होती है, उसी के संकेत पर मनुष्य चलता है । महात्मा गांधी ने इस आन्तरिक संघर्ष को कौरवों और पाण्डवों के बीच हुए महाभारत की संज्ञा दी थी । यह युद्ध कभी समाप्त नहीं हुआ; न जब तक मनुष्य का अस्तित्व है समाप्त होगा ।