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जैनधर्म की हजार विचार (१२) किसी भी निन्दनीय काम में प्रवृत्ति न करे । (१३) आय के अनुसार ही व्यय करे। (१४) अपनी आर्थिकस्थिति के अनुसार वस्त्र पहने । (१५) बुद्धि के आठ गुणों से युक्त होकर प्रतिदिन धर्म-श्रवण
करे। (१६) अजीर्ण होने पर भोजन न करे । (१७) नियत समय पर सन्तोष के साथ भोजन करे । (१८) धर्म के साथ अर्थ-पुरुषार्थ, काम-पुरुषार्थ और मोक्ष-पुरुषार्थ
का इस प्रकार सेवन करे कि कोई किसी का बाधक न हो। (१६) अतिथि, साधु और दीन-असहायजनों का यथायोग्य सत्कार
करे । (२०) कभी दुराग्रह के वशीभूत न हो। (२१) गुणों का पक्षपाती हो-जहां कहीं गुण दिखाई दे, उन्हें
ग्रहण करे और उनकी प्रमंशा करे । (२२) देश और काल के प्रतिकूल आचरण न करे। (२३) अपनी शक्ति और असक्ति को समझे । अपने सामर्थ्य का
विचार करके ही किसी काम में हाथ डाले, सामर्थ्य न होने
पर हाथ न डाले। (२४) सदाचारी पुरुपों की तथा अपने से अधिक ज्ञानवान् पुरुषों
की विनय-भक्ति करे। (२५) जिनके पालन-पोषण करने का उत्तरदात्वि अपने ऊपर हो,
उनका पालन-पोषण करे। (२६) दीर्घदर्शी हो अर्थात् आगे-पीछे का विचार करके कार्य करे । (२७) अपने हित-अहित को समझे, भलाई-बुराई को समझे । (२८) लोकप्रिय हो अर्थात् अपने सदाचार एवं सेवा-कार्य के द्वारा
जनता का प्रेम सम्पादित करे। (२९) कृतज्ञ हो अर्थात् अपने प्रति किये हुए उपकार को नम्रता
पूर्वक स्वीकार करे।