SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सदाचार ४. ६. ७. ८. चं भिक्खाए वा गिहत्थे वा सुब्वए कम्मई दिवं । 7 - उत्तराध्ययन ५।२२ भिक्षु हो चाहे गृहस्थ हो, जो सुव्रती सदाचारी है, वह दिव्यगति को प्राप्त होता है । गिहिवासे वि सुब्वए । धर्मशिक्षा सम्पन्न गृहस्थ गृहवास में भी सुव्रती है । न संतसंति मरणन्ते, सीलवंता ८६ - उत्तराध्ययन ५।२४ बहुस्सुया । - उत्तराध्ययन ५।२६ ज्ञानी और सदाचारी आत्माएं मरणकाल में त्रस्त अर्थात् भयाकान्त नहीं होते । भणंता अकरेन्ता य बंधमोक्खपइण्णिणो । वायावीरियमेत्तेण समासासेन्ति अप्पयं ॥ न तं अरी कंठछित्ता करेइ, - उत्तराध्ययन ६।१० जो केवल बोलते हैं करते कुछ नही, वे बन्ध-मोक्ष की बातें करनेवाले दार्शनिक केवल वाणी के बल पर ही अपने आपको आश्वस्त किए रहते हैं । न चित्ता तायए भासा, कुओ विज्जाणुसासणं । - उत्तराध्ययन ६।११ विविध भाषाओं का पांडित्य मनुष्य को दुर्गति से नही बचा सकता । फिर भला विद्याओं का अनुशासन - अध्ययन किसी को कैसे बचा सकेगा ? जं से करे अप्पणिया दुरप्पा | - उत्तराध्ययन २०१४८
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy