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जिनशासन-शिरोमणि आचार्य भद्रबाहु ७१ हतोत्साहित नही हू पर मुझे वाचना अल्प मात्र मे मिल रही है। आपके जीवन का सन्ध्या काल है, इतने कम समय मे मेरु जितना ज्ञान कैसे ग्रहण कर पाऊगा?"
बुद्धिमान आर्य स्थूलभद्र की चिन्ता का निमित्त जान आर्य भद्रबाहुने आश्वासन दिया-"शिष्य । चिन्ता मत करो, मेरा साधनाकाल सम्पन्नप्राय है। उसके बाद मैं तुम्हे रात-दिन यथेष्ट समय वाचना के लिए दूगा।"
श्रुतसम्पन्न आर्य भद्रवाहु एव स्थूलभद्र के बीच हुए इस सवाद का उल्लेख प्राचीन ग्रन्थो मे प्रायः प्राप्त होता है।
आर्य स्थूलभद्र का अध्ययन-क्रम चलता रहा। उन्होने दो वस्तु कम दशपूर्व की वाचना ग्रहण कर ली थी। तित्थोगालिय पइन्ना के अनुसार आर्य स्थूलभद्र ने दशपूर्व पूर्ण कर लिए थे। उनके ग्यारहवे पूर्व का अध्ययन चल रहा था। ध्यान साधना का काल सम्पन्न होने पर आर्य भद्रवाहु पाटलिपुत्र लौटे । यक्षा आदि साध्विया आर्य भद्रवाहु के वन्दनार्थ आयी। आर्य स्थूलभद्र उस समय एकान्त मे ध्यानरत थे। परम वन्दनीय महाभाग आचार्य भद्रबाहु के पास अपने ज्येष्ठ भ्राता आर्यस्थूलभद्र को न देख साध्वियो ने उनसे पूछा-"गुरुदेव हमारे ज्येष्ठ भ्राता मुनि आर्य स्थूलभद्र कहा हैं ?" भद्रवाहु ने स्थान-विशेप का निर्देश दिया। यक्षा आदि साध्विया वहा पहुची। बहनो का आगमन जान आर्य स्थूलभद्र को अपने ज्ञान का अह मा गया था। वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए सिंह का रूप बनाकर बैठ गए । साध्विया शेर को देखकर डर गयी। वे आचार्य भद्रबाहु के पास तीव्र गति मे चलकर पहुची और प्रकम्पित स्वर मे बोली-"गुरुदेव, आपने जिस स्थान का सकेत दिया था, वहा केसरीमिह बैठा है । 'ज्येष्ठार्य जग्रसे सिंह-लगता है, हमारे भाई का उसने भक्षण कर लिया है ।"भद्रबाहु ने समग्न स्थिति को ज्ञानोपयोग से जाना और कहा
"वन्दध्व तन्त्र व सोऽस्ति ज्येष्ठार्यो न तु केसरी।" वह केसरीसिंह नही तुम्हारा भाई है। पुन वही जाओ। तुम्हे तुम्हारा माई मिलेगा। उसे वन्दन करो।" ___ आचार्य भद्रबाहु द्वारा निर्देश प्राप्त कर बहने पुन उसी स्थान पर गयी। ज्येष्ठ वन्धु आर्य स्थूलभद्र को देखकर प्रसन्नता हुई। सबने मुकुलित पाणिमस्तक झुकाकर वन्दन किया और वे बोली-"भ्रात । हम पहले भी यहा आयी थी, पर आप नही थे । यहा पर केसरी बैठा था।" आर्य स्थूलभद्र ने उत्तर दिया"साध्वियो । श्रुतज्ञान की ऋद्धि का प्रदर्शन करने के लिए मैंने ही सिंह का रूप धारण किया था।"
__ आर्य स्थूलभद्र एव यक्षादि साध्वियो का कुछ समय तक वार्तालाप चला । मुनि श्रीयक के रोमाचकारी समाधि-मरण की घटना उन्होने आर्य स्थूलभद्र को बतायी। इस घटना-श्रवण से आर्य स्थूलभद्र को भी खिन्नता