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५६ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
जाता, अत इस भेद को आज तक मैने श्रमणो के सामने उद्घाटित नहीं किया था।" आचार्य शय्यम्भव की गोपनीयता पर श्रमण आश्चर्यचकित रह गए। __ जीवन के सन्ध्याकाल मे आचार्य णय्यम्भव ने अपने पद पर श्रुतमागरपारीण यशोभद्र को नियुक्त किया।
श्रुतवल से आचार्य शय्यम्भव शार्दूल की भाति दु धर्प थे। पूर्वज्ञान से नियूँढ सूत्र रचना का प्रारम्भ उन्ही से हुआ है। उनका जीवन ब्राह्मण सस्कृति और जैन सस्कृति का मिलन है तथा अध्यात्म का उर्वारोहण है।
आचार्य शय्यम्भव अट्ठाईस वर्ष की अवस्था मे श्रमण दीक्षा ग्रहण कर उनचालीस वर्ष की अवस्था मे आचार्य पद पर आरूढ हुए थे। सयमी जीवन के कुल ३४ वर्षों मे २३ वर्ष तक युगप्रधान पद के दायित्व को निपुणता से मचालन किया। वे वासठ वर्ष की अवस्था मे वी०नि०६८ (वि० पू० ३७२) मे स्वर्गगामी बने।
आधार-स्थल
सुहम्मो नाम गणधरो आसी, तस्सवि जवूणामी, तस्सविय पभवोत्ति, तस्सऽनया कयाइ पुन्वरत्तावरत्तम्मि चिंता समपन्ना को मे गणहरो होज्जत्ति अपणो गणे य स य सव्वओ उवओगो कओ, ण दीस कोइ अब्वोच्छित्तिकरो ताहे गारत्येसु उवउत्तो, उवओगे कए रायगिहे सेज्जभव माहण जन्न जयमाण पास।
(दशव० हारि-वृत्ति, पनाक १०) २ तेण य सेज्जभवेण दारमूलेठिएर्ण त वयण सुम, ताहे सो विचितेइ एए उवसता तवस्सिणो असच्च ण वयति ।
(दशव हारि-वृत्ति, पनाक १०-११) ३ जया य सो पच्वइओ तया य तस्स गुन्विणी महिला होत्या,
(दशवं ० हारि-वृत्ति, पनाक ११(१)) ४ मायाए से भणि 'भणग' ति तम्हा मणओ से णाम कयति ।
(दशव • हारि-वृत्ति, पत्राक ११(२)) ५ एव च चिन्तयामास शय्यम्भवमहामुनि । अत्यल्पायुरय बालो भावी श्रुतधर कथम् ॥१२॥
(परिशिष्ट पर्व, सर्ग ५) ६ सिद्धान्तसारमुद्धृत्याचार्य शय्यम्भवस्तदा । दशवकालिक नाम श्रुतस्कन्धमुदाहरत् ॥२५॥
(परिशिष्ट पर्व, सर्ग ५) ७ आणद असुपाय कासी सिज्जभवा तहिं थेरा । जसभहस्स य,पुच्छा कहणा अ विभालणा सघे ॥३७१॥
(दशव० नियुक्ति)