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५४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
उपक्रम चला। श्रमण वोले-"अहो कष्टमहो कष्ट तत्त्व विज्ञायते नहि"अहो ! खेद की बात है, तत्त्व नही जाना जा रहा है।
तत्त्व को नही जानने की वात महाभिमानी उद्भट विद्वान् शय्यम्भव के मस्तिष्क में टकराई । सोचा, ये उपशान्त तपस्वी झूठ नहीं बोलते। हाथ में तलवार लेकर वे अध्यापक के पास गए और तत्त्व का स्वरूप पूछा । उपाध्याय ने कहा--"स्वर्ग और अपवर्ग को प्रदान करने वाले वेद ही परम तत्त्व है।" शय्यम्भव वोले-"वीतद्वेष, वीतराग, निर्मम, निष्परिग्रही, शान्त महर्षि अवितथ भापण नही करते अत यथावस्थित तत्त्व का प्रतिपादन करो। अन्यथा इस तलवार से शिरश्च्छेद कर दूंगा।" लपलपाती तलवार को देखकर अध्यापक काफ उठा और कहने लगा-"अहंत धर्म ही यथार्थ तत्त्व है।"
विद्वान् शय्यम्भव महाभिमानी होते हुए भी सच्चे जिज्ञासु थे। यज्ञ सामग्री अध्यापक को सभलाकर श्रमणो की खोज में निकले और एक दिन आचार्य प्रभव के पास पहुच गए । प्रभव ने उन्हे यज्ञ का यथार्थ स्वरूप समझाया। अध्यात्म की विशद भूमिका पर जीवन-दर्शन का चित्र प्रस्तुत किया। आचार्य प्रभव की पीयूपस्रावी वाणी से बोध प्राप्त कर शय्यम्भव श्रमण सत्र में प्रविष्ट हुए।।
वे वैदिक दर्शन के धुरन्धर विद्वान् पहले से ही थे। आचार्य प्रभव के पास उन्होने १४ पूर्वो का ज्ञान प्राप्त किया और श्रतधर की परम्परा मे वे द्वितीय श्रुतकेवली बने।
श्रुतसम्पन्न शय्यम्भव को अपना ही दूसरा प्रतिविम्ब मानते हुए आचार्य प्रभव ने उन्हे वी०नि० ७५ (वि० पू० ३९५) मे आचार्य पद से अलकृत किया।
ब्राह्मण विद्वान् का श्रमण सघ मे प्रविष्ट हो जाना उस युग की एक विशेष घटना थी। शय्यम्भव जब दीक्षित हुए तव उनकी नवयुवती पत्नी गर्भवती थी। ब्राह्मण वर्ग मे चर्चा प्रारम्भ हुई
अहो शय्यम्भवो भट्टो निष्ठुरेभ्योऽपि निष्ठुर । स्वा प्रिया यौवनवती सुशीलामपि योऽत्यजत् ।। ५७ ॥
(परिशिष्ट पर्व, सर्ग ५) विद्वान् शय्यम्भव भट्ट निष्ठुरातिनिष्ठुर व्यक्ति है जिसने अपनी युवती पत्नी का परित्याग कर दिया है। साधु बन गया है। नारी के लिए पति के अभाव मे पुत्र ही आलम्बन होता है । वह भी उसके नही है। अवला भट्ट-पत्नी कैसे अपने जीवन का निर्वाह करेगी ? स्त्रिया उसमे पूछती-"वहिन, गर्भ की सभावना है?" वह सकोच करती हुई कहती-'मणय'-यह मणय शब्द संस्कृत के मनाक शब्द का परिवर्तित रूप है जो सन्व का बोध करा रहा था तथा कुछ होने का सकेत कर रहा था। भट्ट-पत्नी के इस छोटे-से उत्तर से परिवार वालो को सतोप मिला । एक दिन भट्ट-पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम माता द्वारा उच्चरित मणय