________________
२१. प्रवचन - प्रवीण आचार्य जवाहर
साधुमार्गी परम्परा के विद्वान् आचार्य जवाहरलाल जी आचार्य श्रीलाल जी के उत्तराधिकारी थे । उनका जन्म वी० नि० २४०२ (वि०स० १९३२ ) मे हुआ । लगभग सोलह वर्ष की किशोरावस्था में उन्होने पूर्ण वैराग्य के साथ भागवतीदीक्षा ग्रहण की । तैंतालीस वर्ष की अवस्था मे वे आचार्य वने । विभिन्न दर्शनो का उन्हें ज्ञान था ।
वह युग शास्त्रार्थ प्रधान था। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के साथ उनके कई शास्त्रार्य हुए । धर्मचर्चाए चली । विशाल आगम- सागर का इस निमित्त आशातीत मन हुआ। सैद्धान्तिक विषयों का पुन -पुन आवर्तन, परावर्तन, प्रत्यावर्तन हुआ । चिन्तन, मनन एव निदिध्यासन हुआ । जनसाधारण के लिए ये शास्त्रार्थ ज्ञानवर्धक सिद्ध हुए एव विद्वद् वर्ग को भी जैन दर्शन की गम्भीर दृष्टियो को समझने का अवसर मिला ।
आचार्य जवाहरलाल जी की साहित्य सेवाए भी उल्लेखनीय है । उनके तत्त्वा वधान मे सूत्रकृताग जैसे गम्भीर सूत्र की संस्कृत टीका का हिन्दी अर्थसहित सम्पादन हुआ । इससे प्रस्तुत आगम के कठिनतम पाठो के अर्थ हिन्दी पाठको के लिए सुगम हो गए है ।
जनकरयाणोपयोगी, विविध सामग्री से परिपूर्ण उनके अनेक प्रवचन 'जवाहर किरणावली' नामक कृति के कई भागो मे प्रस्तुत है ।
आचार्य जी के नाम पर समाज मे अनेक प्रवृत्तियो का सचालन हुआ। बीकानेर जिलान्तर्गत भीनासर में प्राचीन एव नवीन सहस्रो ग्रथो का भडार जवाहर पुस्तकालय उनके कर्मनिष्ठ जीवन की स्मृति करा रहा है ।
आचार्य जवाहरलाल जी की वाणी मे ओज था एव वक्तव्य देने की कला प्रभावक थी। जैन - जैनेतर सभी प्रकार के लोग उनके उपदेशो से प्रभावित हुए है । देश तथा समाज की सामयिक समस्याओ पर भी वे अपना चिन्तन प्रस्तुत करते रहते थे ।
स्थानकवासी सघो की एकता के लिए अजमेर श्रमण सम्मेलन पर उन्होने