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कमनीय कलाकार आचार्य कालूगणी ३८५
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था 'मगन मुनि ने इस अवसर पर डालगणी के सामने विकल्प मे कालूगणी का नाम प्रस्तुत किया। डालगणी का ध्यान तब से ही भावी आचार्य के रूप मे गणी पर केन्द्रित हो गया था ।
कालूगणी का आचार्य पद के लिए निर्णय अत्यत रहस्यपूर्ण ढंग से हुआ । डागणी ने चार दिन पूर्व ही पत्र मे नाम लिख दिया था । पर अन्तिम समय तक यह भेद न खुल सका । युवाचार्य पद पर चार दिन तक सर्वथा गुप्त रूप में रहे, ऐसा होना कालूमणी के अनुकूल ही था । वे कभी अपना प्रदर्शन नही चाहते थे और पद-लालसा से भी सर्वथा दूर थे ।
आचार्य कालूगणी शरीर सम्पदा से भी सम्पन्न थे । लम्बा कद, चमकीली आखें, गेंहुआ वर्ण और प्रसन्न आकृति उनके बाह्य व्यक्तित्व की झाकी है। उनका अन्तरग व्यक्तित्व मधवागणी का वात्सल्य, माणकगणी की उपासना और डालगणी के कठोर अनुशासन के निकष पर उत्तीर्ण निर्दोष कनक था ।
तेरापय धर्म सघ की उनके शासनकाल मे अभूतपूर्व प्रगति हुई । साधना, शिक्षा, कला, साहित्य आदि विविध धर्मपक्षो मे उन्होंने नए कीर्तिमान स्थापित किए ।
संस्कृत भाषा को तेरापथ धर्मसंघ मे विकास देने का श्रेय आचार्य कालूगणी को है । जयाचार्य ने सस्कृत का वीज वोया । मघवागणी ने उसे परिसिंचन दिया, पर अनुकूल परिस्थितियों के सहयोगाभाव मे उसका विकास अवरुद्ध हो गया था ।
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आचार्य कानूगणी भाग्यशाली आचार्य थे । उनकी प्रगति के लिए प्रकृति ने स्वय द्वार खोले । विकास योग्य माधन सामग्री उन्हे सहज प्राप्त हो जाती थी । भगवती सूत्र जैसे दुर्लभ ग्रथ की ३६ प्रतियो की उपलब्धि सघ को उनके शासन
हुई ।
श्रमण श्रमणी परिवार की भी तेरापथ धर्म सघ मे उस ममयं अभूतपूर्व वृद्धि हुई । आचार्य श्री कालूगणी ने कुल चार सौ दस दीक्षाए प्रदान की । उनमे अधिकतर लघुवय श्रमण श्रमणियो की दीक्षाए थी। कई दम्पती दीक्षार्थी भी थे ।
आचार्य श्री कालूगणी स्वय एक कुशल कलाकार थे। उनकी अनुपम कृति आचार्य श्री तुलसी के रूप मे हमारे सामने है । इन्हे देखकर आचार्य श्री कालूगणी
कुशल कलाकारिता का सहज स्मरण हो आता है । इस अमूल्य कृति के लिए जनमानस उन्हे सौ-सौ वधाइया देता है ।
तेरापथ धर्म सघ मे श्रमणी श्रमण सफल साहित्यकार, प्रवण वैयाकरण, कुशल वाग्मी, उग्र चर्चावादी और प्रबल प्रचारक बनकर युग के सामने आए। उन सवके विकास-पथ मे ऊर्जाकेन्द्र आचार्य श्री कालूगणी थे ।
जैन धर्म का व्यापक प्रचार करने हेतु विहार-क्षेत्र को उन्होने विस्तृत किया । उनके शासनकाल मे साधु-साध्वियो की प्रलम्बमान यात्राए प्रारंभ हुई। गुजरात,