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________________ दृढप्रतिज्ञ आचार्य धर्मदास जी ३६१ भेट चढाने वाले अद्भुत बलिदानी आचार्य थे। धारा नगरी मे उनके शिष्य ने वी०नि०२२४२ (वि० १७७२) मे अनशन किया था। __उत्तम कार्य को सवल व्यक्ति ही सफल कर पाते है। मानसिक दुर्बलता ने मुनि को पथ से विचलित कर दिया। उम समय जैन धर्म के मस्तक को ऊचा रखने के लिए अपना उत्तराधिकार शिष्य मूलचन्द जी को सौपकर शिथिल मुनि का आसन अनशनपूर्वक आचार्य धर्मदास जी ने ग्रहण कर लिया। अपने सघ की सुव्यवस्था के हेतु उन्होने अपने बाईस विद्वान् शिष्यो के बाईस दल बना दिए और तव से यह सघ बाईस सम्प्रदाय के नाम से पहचाना जाने लगा। ___ आचार्य धर्मदास जी को तीन दिन का अनशन आया। वे वी०नि० २२४२ (वि० १७७२) मे धर्म हेतु इस देह का उत्सर्ग कर अपने नाम को अमर कर गए।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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