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________________ ३२२ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य नामक विद्वान था। ___ आठ विशाल अध्यायो में सम्पन्न, ३५६६ सूत्रो मे निवद्ध इस व्याकरण ने साहित्य के क्षेत्र मे वही स्थान प्राप्त किया जो पाणिनि तथा शाकटायन की व्याकरण को मिला था। प्रस्तुत व्याकरण में सात अध्याय सस्कृत के और आठवा अध्याय प्राय प्राकृत उस समय आबाल-वृद्ध की भाषा थी अत उनके प्रति करुणा से प्रेरित होकर ही हेमचन्द्र ने सस्कृतप्रधान व्याकरण में प्राकृत का अध्याय जोडा था। व्याकरण के क्षेत्र मे हेमचन्द्र की इस पारगामी प्रज्ञा पर दिग्गज विद्वानो के मस्तक भी झुक गए। उन्होने कहा किं स्तुम शब्दपथोधे , हेमचन्द्रयतेमंतिम् । एकेनापिहि येनेदृक् कृत शब्दानुशासनम् ॥ प्रमाणमीमासा तथा अन्ययोगव्यवच्छेदिका और अयोगव्यवच्छेदिका नामफ दो द्वानिशिकाओ की रचना मे सम्पूर्ण भारतीय दर्शन की अवतारणा उनकी मनीपा का जबरदस्त चमत्कार था। 'त्रिषष्ठिशलाकापुरुप' नामक कृति मे तिरेसठ महापुरुपो के जीवन-चरित्र लिखकर उन्होने साहित्य जगत को वहमल्य रत्न भेट किया । तत्कालीन सास्कृतिक चेतना, सभ्यता का उत्कर्ष, धर्म, दर्शन, विज्ञान, कला और अध्यात्म आदि विविध विषयो को अपने मे गभित किये हए यह ग्रन्थ इतिहास-प्रेमी पाठका के लिए अतिशय उपयोगी सिद्ध हुआ। ___महाभारत के विपय मे कही गयी यह लोकोक्ति-"यदिहास्ति तदन्यत्न यन्नेहास्ति न तत्क्वचित्" प्रस्तुत काव्यात्मक शैली मे लिखे गये इस गन्थ पर पूर्णत नही अधिकाशत अवश्य चरितार्थ होती है। अभिधान चिन्तामणि, हेम अनेकार्थ मग्रह, देशी नाममाला और निघटु कोप-इन चार ग्रन्थो मे रचनाकार ने शब्द-ससार का अलौकिक भण्डार भर दिया है। __ अठारह सौ श्लोक परिमाण अभिधान चिन्तामणि कोप बहुत सुन्दर, सरल और सरस भाषा मे ग्रथित है और वह धनजय की प्रतिभा को भी विस्मृत करा देता है । हेमचन्द्र की इस पर स्वोपज्ञ-वृत्ति भी है। काव्यानुशासन और छदोनुशासन में भी उनकी अपनी सर्वथा स्वतन्त्र शक्ति का उपयोग हुआ है । "काव्यमानन्दाय" कहकर उन्होने काव्य के उच्चतम लक्ष्य का निर्धारण किया और मम्मट के द्वारा प्रस्तुत काव्यप्रयोजन की परिभापा मे एक नया क्रम जोडा। सस्कृत द्वयाश्रय महाकाव्य और प्राकृत द्वयाश्रय महाकाव्य मे चोलुक्य वश का पूर्ण इतिहास और काव्य के सभी गुणो का स्फुट दर्शन एक साथ होता है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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