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४१ ज्ञान-पीयूष पाथोधि आचार्य हेमचन्द्र
आचार्य हेमचन्द्र श्रमण सस्कृति के उज्ज्वल रत्न थे। वे वी० नि० १६१५ (वि० ११४५) मे जन्मे । कार्तिकी पूर्णिमा के दिन इस नवोदित चमकते चान्द को पाकर माता पाहिनी और पिता चाचिग का धन्धुका निवासी ओढ वणिक् परिवार ही नही, पूरा गुजरात ही धन्य हो गया।
बालक जब गर्भ मे आया था उस समय पाहिनी ने स्वप्न मे देखा-वह चिन्तामणि रत्न को गुरु के चरणो मे भक्ति-विशेष से समर्पित कर रही है । उस समय धन्धुका नगर मे चन्द्रगच्छीय पद्मसूरि के शिष्य श्री देवचन्द्र सूरि विराजमान थे। पाहिनी ने अपने स्वप्न की वात उनके सामने कही। गुरु ने कहा"पाहिनी । जैन शासन सागर की कौस्तुभ मणि के समान तुम्हारा पुत्र तेजस्वी होगा।"
गुरु के कथन के अनुसार ही देदीप्यमान तेजस्वी पुत्ररत्न को देखकर पाहिनी को अत्यधिक प्रसन्नता हो रही थी। चन्दन को उत्पन्न करने वाली मलयाचल चूला की तरह नन्दन की प्राप्ति से वह गौरवान्वित हुई । उल्लासमय वातावरण मे वारहवे दिन पुत्र का नाम चगदेव रखा गया। __पाहिनी धर्मनिष्ठा और श्राविका थी। एक दिन वह पुत्र चगदेव को लेकर देवचन्द्र सूरि का प्रवचन सुनने गयी। देवचन्द्र सूरि व्यक्ति के पारखी थे। उन्हे चगदेव के मुखमडल पर उभरने वाली अत्यन्त सूक्ष्म रेखाओ मे उच्चतम व्यक्तित्व के दर्शन हुए । आचार्य देवचन्द्र ने पाहिनी से धर्म-सघ के लिए बालक की माग की और कहा-"तुम्हारे इस कुलदीप से जैन दर्शन की महान् प्रभावना होने की सभावना है"
गुरु के निर्देश से मार्ग-दर्शन प्राप्त पाहिनी ने अपने इकलौते पुत्र को पूर्व स्वप्न का स्मरण करते हुए धर्मसंघ के लिए प्रसन्नतापूर्वक समर्पित कर दिया।
बालक का दीक्षा माघ शुक्ला चर्तुदशी शनिश्चर वार, वृहस्पति लग्न में हुई। दीक्षा महोत्सव खभात के राजा उदयन ने किया था। ___वालक का दीक्षा नाम सोमचन्द्र रखा गया। मुनि सोमचन्द्र अपने शीतल स्वभाव और प्रखर प्रतिभा के कारण यथार्थ मे ही मोमचन्द्र थे । श्रमण मोमचन्द्र