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३६ प्रेक्षा- पयोद ( मल्लधारी) आचार्य हेमचन्द्र
चार पत्नियो के स्नेहपाश को तोडकर सन्यास पथ पर चरण बढाने वाले आचार्य हेमचन्द्र मल्लधारी हेमचन्द्र के नाम से प्रसिद्ध हैं। वे प्रश्न वाहन कुल की मध्यम शाखा मे हर्पपुरीय गच्छ के मल्लधारी अभयदेव सूरि के शिष्य थे । उनका जीवन-परिचय मल्लधारी राजशेखर को प्राकृत रचना -द्वयाश्रय की वृत्ति से प्राप्त होता है । इस वृत्ति की प्रशस्ति के अनुसार मल्लधारी हेमचन्द्र राजमती | प्रद्युम्न उनका नाम था ।
- जीवन में वे हेमचन्द्र के नाम से विख्यात हुए । वडी अवस्था में दीक्षित होकर भी उन्होने श्रुत की सम्यक् आराधना की । ज्ञान - महार्णव भगवती का पारायण करना भी वहु श्रमसाध्य है । आचार्य जी ने अपने नाम की भाति उसे कठाग्र कर लिया। वे प्रवल स्वाध्यायी साधक थे। उनकी अध्ययन-परायण रुचि ने लगभग लक्षाधिक ग्रन्थो का वाचन किया। उनकी पठन सामग्री मे प्रमाणशास्व और व्याकरणशास्त्र जैसे गंभीर ग्रन्थ भी थे। उनकी पैनी प्रतिमा ग्रन्थो की शब्दमयी पर्तों को चीरकर अर्थ की गहराई तक पैठ जाती थी ।
वे श्रेष्ठ वाग्मी थे । उनको ध्वनि मेघ को तरह गंभीर थी । आधुनिक युग के ध्वनिवर्धक जैसे कोई भी माधन उस समय विकसित नही थे । फिर भी दूर-दूर तक उनकी आवाज स्पष्ट सुनाई देती। उनकी प्रवचन शैली अत्यन्त मधुर और आकर्षक थी । मिश्री सा मिठास उनके स्वरों में उभरता । बहुत बार लोग उनके वचनो को उपाश्रय के बाहर खड़े होकर भी तन्मयता से सुनते । वैराग्य रस से परिपूर्ण "उपमिति भव प्रपच कथा" जैसा दुरुह और श्रम साध्य ग्रन्थ भी उनके प्रवचनो मे सरल और आनन्दकारी प्रतीत होता । श्रोताओ की प्रार्थना पर निरन्तर तीन वर्ष तक वे इसी एक कथा पर व्याख्यान करते रहे। अजमेर के राजा जयसिंह उनके व्याख्यानो पर मुग्ध थे । शाकभरी का राजा पृथ्वीराज उनके व्याख्यान से प्रभावित होकर जैन वन गया था । भुवनपाल राजा भी उनका परम भक्त था ।
मल्लधारी जी व्याख्यानकार ही नही साहित्यकार भी थे। उन्होने दस ग्रन्थो की रचना की है । (१) आवश्यक टिप्पण, (२) शतक विवरण, (३) अनुयोग द्वार वृति, (४) उपदेशमाला सूत्र, (५) उपदेशमाला वृत्ति, (६) जीव समास