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३८ समाधि-सदन आचार्य शुभचन्द्र
__आचार्य शुभचन्द्र ध्यान पद्धति के विशिष्ट व्याख्याता एव सस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे। उनकी जीवन-परिचायिका सामत्री बहुत कम प्राप्त है। इनकी जन्मभूमि, माता-पिता के सम्बन्ध में भी प्रामाणिक तथ्य अनुपलब्ध रहे हैं। __माहित्यिक क्षेत्र में आचार्य शुभचन्द्र की विशिष्ट कृति ज्ञानार्णव ग्रन्थ है। मालिनी, नग्धरा, मन्दाक्रान्ता, शार्दूलविक्रीडित आदि वृत्तो मे रचित तथा ४२ प्रकरणो में विभक्त यह सुविशाल ग्रन्थ ध्यान विषयक प्रचुर सामगी प्रस्तुत करता है। पिण्नुम्थ, पदस्य, रूपस्य, रूपातीत ध्यान का सूक्ष्मता से विश्लेषण, आग्नेयी मारुती, वारुणी, पाथिवी धारणाओं की विस्तार से परिचार्चा, धर्मध्यान, शुक्लध्यान का स्वरूप निर्णय, आज्ञा-विचय, अपाय विचय, विपाक-विचय, सस्थानविचय का विवेचन, मन के विभिन्न स्तरो का बोध, कर्मक्षय की प्रक्यिा , उनके व्यवस्थित कम का दिशा-निर्देश, वारह भावना, पाचमहावत आदि बहुविध विपयो का ध्यान योग के साथ स्पप्ट और सुसगत प्रतिपादन इसमे हुआ है। सरस एव प्राजल शैली मे प्रस्तुत सरल-रमणीय यह कृति आचार्य शुभचन्द्र के प्रगल्भ पाण्डित्य, मर्म मेदिनी प्रज्ञा तथा विभिन्न दर्शनी के विमशन से प्राप्त बहुश्रुतता का प्रतिविम्ब है।
विशाल परिमाण की इस रचना में भी आचार्य शुभचन्द्र का व्यक्तिश परिचय नहीं के बरावर है । लेखक ने अपने सबन्ध में कुछ भी सकेत नही दिया है। पाठक वर्ग से स्व को अप्रकाशित रखने का यह भाव उनके निगर्वी मानस का प्रतीक हो सकता है पर इतिहास-गवेपको को अपने साथ न्याय नही लगता। ___आचार्य हरिभद्र, आचार्य शुभचन्द्र एव कलिकाल-सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र तीनो योग के महान व्याख्याकार थे । आचार्य शुभचन्द्र का नाम इनमे मध्यवर्ती है। आचार्य हरिभद्र इनसे पूर्व ये । आचार्य हेमचन्द्र इनसे बाद के है।।
ममाधि-सदन आचार्य शुभचन्द्र पर आचार्य पूज्यपाद, भट्ट अकलक, अमृतचन्द्र, सोमदेव, अमितगति की कृतियो का पर्याप्त प्रभाव प्रतीत होता है। ये सब इनसे पूर्ववर्ती विद्वान् थे । आचार्य हरिभद्र इन सबसे और पूर्व के थे। आचार्य हेमचन्द्र की यौगिक कृति 'योगशास्त्र' को देखने से लगता है उनपर आचार्य शुभ