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३१० जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
कहते-"चर्मरोगी पर बहुत-सी मक्खिया चिपकती है, इससे वेदना वढती है। अधिक परिवार से कल्याण नहीं होता। शूकरी के बहुत सन्तान होती है पर खाने को क्या मिलता है ? गलत प्रकार से श्रावको की संख्या वढाना कभी श्रेयस्कर नही है । सही प्रतिवोध से बना एक श्रावक भी अच्छा है।"
सस्कृत, प्राकृत और अपभ्रश भापा के वे अधिकारी विद्वान् थे। उन्होने इन तीनो भापाओ मे 'सदेह-दोहावली' आदि अनेक छोटे-छोटे ग्रन्थो का निर्माण किया।
__ मारवाड, सिंध, गुजरात, बागड, मेवाड और सौराष्ट्र उनके मुख्य विहरणस्थल थे। जैन सख्या का विस्तार उनके जीवन की अभूतपूर्व देन है। सख्यावृद्धि सुविहित विधिमार्ग की नीव को मजबूत करने मे परम सहायक सिद्ध हुई। आचार्य जिनदत्त सूरि की इस प्रवृत्ति का अनुकरण समस्त जैन समाज कर पाता तो आज जनो की संख्या सभवत कई करोड तक पहुच जाती। ____ अनशनपूर्वक वी० नि० १६८१ (वि० १२११) आषाढ शुक्ला एकादशी के दिन जनप्रिय जिनदत्त सूरि स्वर्गगामी बने।