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२८६ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
इसकी रचना शैली धर्म परीक्षादि ग्रन्थो से सर्वथा भिन्न है । इस कृति के सृजनहार अमितगति प्रस्तुत आचार्य अमित गति से प्राचीन थे। वे देवसेन के शिष्य थे एव आचार्य नेमिसेन के गुरु थे। नेमिसेन प्रस्तुत अमितगति के दादा गुरु थे।
प्रस्तुत आचार्य अमितगति का उज्जन के राजा मुज पर अत्यधिक प्रभाव था। वह अपनी सभा मे उन्हे सम्मान दिया करता था। आचार्य अमितगति ने राजा मुज की राजधानी मे रहकर कई ग्रन्थो का निर्माण किया। उन्होने अपनी सभी कृतियो मे माथुर सघ के आचार्य माधवसेन के शिष्य होने का उल्लेख किया है। उनका यह परिचय उनके जीवन-परिचय मे प्रामाणिक सामग्री है।
सुभापित रत्न सदोह की रचना आचार्य अमितगति ने वि० स० १०५० पोप शुक्ला ५ के-दिन मुज राजा की राजधानी में की थी। इस समय उनकी आयु कम से कम तीस वर्ष की रही होगी। विद्वानो की इस सभावना के आधार पर महाप्रभावी आचार्य अमितगति का समय विक्रम की ग्यारहवी शताब्दी का पूर्वार्द्ध प्रमाणित होता है।