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पुण्यश्लोक आचार्य पात्रस्वामी
पात्रस्वामी न्यायविद्या के दिग्गज विद्वान् थे । प्रभावक आचायों की शृखला मे न्याय विपय को उजागर करने वाले स्वामी नाम मे प्रख्याति प्राप्त दो आचार्य है--नमन्तभद्र स्वामी और केगरी पात्रस्वामी । पात्रस्वामी का दूसरा नाम पात्रकेशरी भी है।
तीक्ष्ण तार्किक दिङ्नाग के 'विलक्षण हेतु' नामक गन्य के प्रतिवाद मे पात्रस्वामी ने 'विलक्षण कदर्थन' ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ स्वामी जी के स्वतन चिन्तन को उपज थी । लक्षण विज्ञापक अन्यो मे यह वन्य मौलिक सिद्ध हुआ । आज यह ग्रन्थ उपलब्ध नही है पर इसके उद्धरण विविध ग्रन्थो मे पाए जाते हैं । अन्यथानुपपन्नत्व यत्न तन त्रयेण किम् ।
त्रिलक्षण हेतु का प्रतिवाद करने वाली यह कारिका आचार्य पात्रस्वामी की - बताई गयी है । आचार्य अकलक देव ने न्याय विनिश्चय में, आचार्य विद्यानन्द ने तत्त्वार्थ श्लोक वार्तिक ने इस कारिका का प्रयोग किया है । वौद्ध विद्वान् शान्तिरक्षित ने भी अपने तत्त्वार्थ सग्रह मे पात्रस्वामी को कारिकाओं को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है ।
पात्रस्वामी की एक अन्य रचना 'पात्र केशरी स्तोत' के नाम से प्रसिद्ध है । इसके मात्र पचाम पद्य हैं। हर पद्य की गहराई पाठक के मानस को छू जाती है । इस कृति का द्वितीय नाम 'वृहत् पच नमस्कार स्तोत्र' भी है ।
कुछ वर्षो पू' विद्यानन्द का ही दूसरा नाम पात्रस्वामी या पात्रकेशरी समझा जाता रहा पर वर्तमान मे इतिहास - गवेषक पति जुगल किशोर जी मुख्तार ने इन दोनी की मिन्नता को विविध युक्तियों से प्रमाणित कर दिया है ।
आचार्य अकलक के ग्रन्थो मे पात्रस्वामी की कारिका का प्रयोग होने से वे इनमे पूर्ववर्ती विद्वान् सिद्ध होते हैं । आचार्य अकलक भट्ट वि० की छठी शताब्दी के विद्वान् माने गये हैं । इनसे पूर्ववर्ती होने के कारण और विद्वान दिङ्नाग ( ई० म० ३४५-४२५) के उत्तरवर्ती होने के कारण पात्रस्वामी विक्रम की छठी-सातवी शताब्दी के विद्वान् प्रमाणित हुए हैं।