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________________ ७ परमागमपारीण आचार्य जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण आगमप्रधान आचार्य जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण निवृति कुल के थे। वे ज्ञानसिन्धु, वाग्मीश्रेष्ठ एव गूढ आगमवाणी के विवेचक थे। उनके युक्ति-सदोह का सहारा पाकर आगम-व्याख्याए विद्वद्भोग्य वन पायी। उन्हे वौद्धिक आधार मिला। ___ आगम के व्याख्या ग्रन्थो मे नियुक्ति के बाद भाष्य का क्रम आता है। नियुक्तियो की भाति भाष्य पद्यबद्ध प्राकृत मे है। नियुक्तिया साकेतिक भाषा मे निवद्ध है। पारिभाषिक शब्दो की व्याख्या करना उनका मुख्य प्रयोजन है । नियुक्ति की अपेक्षा भाष्य अर्थ को अधिक स्पष्टता से प्रस्तुत करते है। बहुत वार आगमो के गूढार्थ को समझने के लिए नियुक्ति का एव नियुक्ति को समझने के लिए भाष्य का सहारा ढूढना पडता है। नियुक्ति के पारिभापिक शब्दो मे गुफित अर्थ वाहुल्य के प्रकाशनार्थ भाष्यो की रचना हुई। पर वे भी कही-कही सक्षिप्त होकर नियुक्ति के साथ एक हो गए है। अनेक स्थलो पर इन दोनो का पृथक् करना असभव-सा लगता है। भाष्यो की रचना नियुक्तियो पर हुई है। कुछ भाष्यो का आधार मूल सूत्र भी है। निम्नोक्त आगम ग्रन्थो पर भाष्य लिखे गए हे-(१) आवश्यक, (२) दशवकालिक, (३) उत्तराध्ययन, (४) वृहत्कल्प, (५) पचकल्प, (६) व्यवहार, (७) निशीथ, (८) जीतकल्प, (६) ओध नियुक्ति, (१०) पिंड नियुक्ति ।। वर्तमान में उपलब्ध भाष्य साहित्य के आधार पर दो भाष्यकारो के नाम उपलब्ध होते है । सघदासगणी एव जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण। सघदासगणी आचार्य हरिभद्र के समकालीन थे, सौ अध्यायो में विभक्त, २८ सहस्र श्लोक परिमाण कृति 'वसुदेव हिण्डी' के रचयिता सघदासगणी से वे भिन्न ये। भाष्यकार सघदासगणी ने निशीथ, वृहत्कल्प, व्यवहार इन तीनो मूत्रो पर विस्तृत भाप्य लिखे है। प्राचीन अनुथतिया, लौकिक कथाए और निग्रन्थो का परम्परागत आचार-विचार, विवियो का वर्णन एव आपात्कालीन स्थिति में अनेयविध अपवाद-मार्ग की सूचनाए भी इनमे पर्याप्त रूप से प्राप्त है। उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, पिंट नियुक्ति, ओव नियुक्ति पर भी माप्र प्राप्त है। ये भाप्य अज्ञात कर्तृक है एव परिणाम मे बहुत छोटे है। ओध नियुक्ति भाप्य
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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