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३ महाप्राज्ञ आचार्य मल्लवादी
महामेधावी आचार्य मल्लवादी को जैन दर्शन की प्रभावना मे महान् श्रेय प्राप्त है । वे तर्कशास्त्र के प्रकाड विद्वान् थे । उनका जन्म गुजरात प्रदेशान्तर्गत वल्लभी में हुआ। उनकी माता का नाम दुर्लभ देवी था । दुर्लभ देवी के तीन पुत्र थे - अजित यश, यक्ष ओर मल्ल । इन तीनो मे आचार्य मल्लवादी सबसे छोटे थे। वे अत्यन्त प्रतिभासम्पन्न वालक थे ।
एक वार जैनाचार्य जिनानन्द सूरि का वल्लभी मे पदार्पण हुआ । जिनानन्द सूरि दुर्लभ देवी के भ्राता थे । उन्होने वल्लभी की जनता को विरक्ति - प्रधान उपदेश दिया। उनसे प्रेरणादायी उद्बोधन सुनकर दुर्लभ देवी और तीनो पुत्र परम वैराग्य को प्राप्त हुए । उन्होने मसार की असारता को समझा। जननी सहित तीनो ने जिनानन्द सूरि के पास दीक्षा ग्रहण की।' लक्षणादि महाशास्त्रो का गम्भीर अध्ययन कर पृथ्वी पर वे प्रख्यात विद्वान् वने । प्रबन्धकोश के अनुसार सौराष्ट्र राष्ट्र के भास्कर महाराज शिलादित्य की दुर्लभ देवी भगिनो थी । मल्लवादी शिलादित्य के भानजे थे ।
भृगुकच्छ मे एक वार जिनानन्द सूरि का बौद्ध भिक्षु नन्द के साथ राजा शिलादित्य के सम्मुख शास्त्रार्थ हुआ । उसमे जैनाचार्य जिनानन्द सूरि की भारी पराजय हुई | पराभव के फलस्वरूप जैन श्रमणो को महान् क्षति उठानी पडी । वहा से उनका निष्कासन हो गया था ।
तीर्थ शत्रुञ्जयाह्न यद्विदित मोक्षकारणम् । भावतस्तद्वौद्धैर्भूतैरिवाश्रितम् ।।
श्वेताम्बरा
जैनो का प्रमुख तीर्थस्थान शत्रुजय था, उस पर भी जैनो का अपना अधिकार नही रहा ।
मल्लवादी अवस्था से वालक थे, विचारो से नही । उन्होने यह दुखद वृत्तान्त स्थविर मुनियो से सुना । घनी अन्तर्वेदना उन्हे कचोटने लगी । जिनानन्द सूरि की हार एव जैन शासन का घोर अपमान उनके लिए असह्य हो गया । अपने खोये गौरव को पुन प्राप्त करने के लिए उन्होने दृढ सकल्प किया ।
मल्लनामा गिरि गत्वा तेपे तीव्रतर तप । ( प्रबन्धकोश पृ० २२ श्लोक ३६ )