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विलक्षण वाग्मी आचार्य वज्र स्वामी १४५
आर्य वज्र से वाचना को ग्रहण करने लगे। कतिपय समय के बाद आर्य सिंहगिरि काआगमन हुआ।श्रमण वर्ग को आर्य वज्र की वाचना से सतुष्ट पाया । वाचनाचार्य के रूप मे आर्य वज्र की नियुक्ति के लिए स्वय मुनिजनो ने आचार्य देव से प्रार्थना की थी।
श्रुत्वेति गुरव प्राहुर्मत्वेद विहृत मया। अम्य जापयितु युष्मान् गुणगौरवमद्भुतम् ॥१२५।।
(प्रभा० चरित, पृ० ६) आर्य सिंहगिरि बोले-"मैं पहले ही मुनि वज्र की योग्यता को परख चुका था पर तुम्हे इससे अवगत कराने के लिए मैने अन्यन्न विहार किया था। गुरु की दूरदर्शिता पर श्रमण संघ हर्पित हुआ एव प्रतिभासपन्न-सुविनीत योग्य शिष्य को पाकर आर्य सिंहगिरि को पूर्ण तोप था। ___ मुनि वन शिग्य समूह को वाचना देते और स्वय भी आर्य सिहगिरि से तपोविधिपूर्वक अध्ययन करते। आगम निधि आचार्य सिंहगिरि के पास जितना ज्ञान था उमे वालमुनि वज्र की सुतीक्ष्ण प्रतिभा पूर्णरूप से ग्रहण कर चुकी थी। आर्य सिंहगिरि ने उनको विशेप अध्ययनार्य दश पूर्वधारी भद्रगुप्त के पास जाने का मार्गदर्शन दिया। ___ गुरु का आदेश प्राप्त कर आर्य वज्र ने दशपुर से अवन्ति की ओर विहार किया। वे अवन्ति नगर के वहिर्भूभाग की सीमा तक पहुचे तब तक सध्या हो चुकी थी। उन्होंने रात्रि-निवास नगर के बाहर ही कही किया। उमी रात्रि मे आचार्य भद्रगुप्त ने स्वप्न देखा पान मे पयमा पूर्णमतिथि कोऽपि पीतवान् ।
__(प्रभा० च०, पृ० १२६) दूध से भरा हुआ मेरा पान या, कोई अतिथि आकर पी गया। रात्रिकालीन इस स्वप्न की बात आर्य भद्रगुप्त ने अपनी शिष्यमडली से कही और इस स्वप्न के आधार पर अपना विश्वास प्रकट करते हुए वे वोले-"दश पूर्वो का ग्राहक विद्यार्थी अवश्य मेरे पाम आएगा।" वात के प्रसग मे ही आर्य वव वहा पहुच गए।
प्रतिभासम्पन्न, पूर्व ज्ञानराशि को ग्रहण करने में सक्षम-सुयोग्य शिष्य आर्य वज्र को पाकर आर्य भद्रगुप्त को अत्यन्त प्रसन्नता हुई। उन्होने सप्रयास अपना सपूर्ण अधीत-श्रुत उन्हे पढाया । दश पूर्व ज्ञानामृत का समग्रता से पान कर आर्य वज्र को भी परम तृप्ति की अनुभूति हुई। निर्धारित लक्ष्यसिद्धि के बाद आर्य भद्रगुप्त ने उन्हे पुन अपने गुरु के पास जाने का आदेश प्रदान किया। सुविशाल ज्ञान-सपदा का अर्जन कर वे आर्य सिंहगिरि के पास आए।
शिष्य की योग्यता से गुरु को सतोप हुआ। सघ ने होनहार शिष्य का सम्मान किया।