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२१. महाविद्या-सिद्ध आचार्य खपुट
आर्य खपुट अपने युग के विशिष्ट प्रभावी आचार्य थे। वे प्रभावोत्पादक विद्याओ के स्वामी थे। भव-विभ्रान्त पथिक के लिए विश्रामस्थल थे। निशीथ चूणि मे आठ व्यक्तियो का धर्म की प्रभावना मे महान् योगदान माना गया है।' विद्यावल पर प्रभावना करने वालो मे वहा आचार्य खपुट का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है ।' अतिशय विद्यासम्पन्नता के कारण प्रवधकोशकार ने उन्हे 'आचार्य सम्राट्' सज्ञा से अभिहित किया है।
आचार्य खपुट किस गच्छ के थे इस सवध का कोई भी सकेत साहित्य मे उपलब्ध नहीं है। ____ आचार्य खपुट के भुवन नाम का एक शिष्य था। वह उनका भागिनेय भी था। आर्य खपुट ने उसे अनेक प्रकार की विद्याए प्रदान की थी। शीघ्रग्राही बुद्धि के कारण कर्णश्रुति से भी कई विद्याए उसने ग्रहण कर ली थी। भृगुकच्छ का राजा वलमिन बौद्ध भक्त था। उसकी सभा मे मुनि भुवन का बौद्धो के साथ महान् शाक्तार्थ हुमा। राजकीय सम्मान प्राप्त, प्रमाणज्ञ, तर्कश, न्यायज्ञ बौद्ध भिक्षु जैनो से अपने को प्रकृष्ट मानते थे। मुनि भुवन की अकाट्य तर्को के सामने इस शास्त्रार्थ मे वे पूर्ण परास्त हो गए। जैन शासन के विजीगिषु 'वड्ढकर' नामक बौद्धाचार्य गुडशस्त्रपुर से भृगुकच्छ आए । शाक्नार्य मे स्याद्वादवादी मुनि भुवन ने उन्हें भी परास्त कर दिया। इससे जैन शासन की महान् प्रभावना हुई।
गुडशस्त्रपुर मे एक बार यक्ष का उपद्रव होने लगा था । जैन सघ विशेषतः इस उपद्रव से आक्रान्त था। गुडशस्त्रपुर से समागत मुनि द्वय के द्वारा विस्तृत विवरण सहित दुखद घटनाचक्र की सूचना आचार्य खपुट को मिली । इन मुनियो को जैन सघ ने ही प्रेपित किया था। आचार्य खपुट इस घटना से निर्वेद को प्राप्त हुए। भुवन शिष्य को उन्होने अपनी कपदिका (विशिष्ट विद्या से सम्बन्धित पुस्तक) सौंपी और कहा-"एपा कपदिका वत्स नोन्मोच्या कौतुकादपि"-वत्स | यह कपदिका मैं तुम्हे दे रहा ह । न किसीके हाथ मे देना है, न कौतुक वश होकर भी कभी इसे खोलना है। समग्र प्रकार से उचित प्रशिक्षण देकर आचार्य खपुट भृगुपुर से चले और गुडशस्त्रपुर पहचे। वहा सघ से मिलकर समग्र