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११८ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य
अभाव मे एक आचार्य के लिए असंभव था । शको की पूर्ण निवासस्थली पारस की कुल होने से निशीथचूर्णि मे उनके लिए पारस कुल का उल्लेख होना सम्भव हैं ।
घनागम ( वर्षा ऋतु का आगमन) के समागम होने के कारण शको सहित आचार्य कालक को सौराष्ट्र मे कई महीनो तक रुकना पडा । शरदऋतु का आगमन हुआ । विशालदल के साथ आचार्य कालक वहा से प्रस्थान कर पाचाल एव लाटादि प्रदेश पर विजयध्वज फहराते हुए मालव की सीमा पर पहुच गए।"
नरेन्द्र गर्दभिल्ल अपनी विद्याशक्ति पर गर्वित था । आक्रमण की बात सुनकर भी गर्दभिल्ल ने कोई ध्यान नही दिया । उसने न नगर-दुर्ग को शस्त्रो से सज्जित किया और न संन्य-दल को कोई आदेश दिया। नगर के द्वार भी शत्रुभय से बन्द नही किए गए ।
आचार्य कालक अपने मे पूर्ण सावधान थे। उन्होने अपने दल से कहा"उज्जयिनी का शासक गर्दभिल्ल अष्टमी चतुर्दशी के दिन अष्टोत्तर-सहस्र जपपूर्वक 'रासभी' विद्या की सिद्धि करता है । विद्या सिद्ध होने पर रासभी भौकती है । उसके कर्कश स्वरो को सुनते ही प्रतिद्वन्द्वी के मुखद्वार से पीप झरता है और वह सज्ञाशून्य हो जाता है । रासभी के इन स्वरो का प्रभाव प्रतिद्वन्द्वी पक्ष पर सार्धं तीन गव्यूति पर्यन्त होता है । अत विद्या से अप्रभावित क्षेत्र में तम्बू तैनात कर लेना ठीक है । शक सामन्तो ने वैसा ही किया। रासभी के प्रभाव को समाप्त कर देने के लिए शब्दवेधी वाण को चलाने मे कुशल एक सौ आठ सुभट राजप्रासाद की ओर निशाना साधकर उचित स्थान पर बैठ गए। विद्या साधन के समय सभी का मुह खुलते ही अपने कर्म मे जागरूक सुभट्टो ने सुतीक्ष्ण वाणो से तत्काल उसका मुह भर दिया। इससे रासभी कुपित हुई एव अशुचि पदार्थों का राजा गर्दभिल्ल पर प्रक्षेप कर अदृश्य हो गयी । शत्रु को निर्बल जानकर शक सामन्तो ने सबल सैन्य शक्ति के साथ अवन्ति पर एकसाथ धावा बोल दिया । लाट प्रदेश की सेना भी इसका पूरा साथ दे रही थी। पूर्व तैयारी के अभाव मे शक्तिशाली गर्दभिल्ल भी विदेशी सत्ता के सामने पराजित हो गया। सुभट्टो ने राज गर्दभल्ल को बन्दी बनाकर आचार्य कालक के सम्मुख प्रस्तुत किया । बहिन सरस्वती को पाकर आचार्य कालक प्रसन्न हुए एव उनके आदेश से अन्यायी शासक गर्दभिल्ल को पदच्युत कर सुभटो ने छोड़ दिया ।
वृहत्कल्प भाष्य चूर्णि के अनुसार गर्दभ अवन्ति राजा 'अनिल सुत यव' का पुत्र था। वह अपनी वहिन अडोलिया के रूप-सौन्दर्य पर मुग्ध था। उसकी इच्छापूर्ति मे दीर्घपृष्ठ नाम का मन्त्री पूर्ण सहयोगी था ।
चूर्ण साहित्य में उल्लिखित यह गर्दभ सभवत सरस्वती का अपहरणकर्ता गर्द भिल्ल ही था । जो विपयान्धता के कारण विदेशी शक्ति द्वारा पराजित होकर