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११-१२. विश्वबन्धु आचार्य बलिस्सह और
गुणसुन्दर नाचार्य वलिस्सह और गुणसुन्दर अपने युग के प्रभावशाली आचार्य थे। आचार्य सुहम्ती एव वचस्वामी के अन्तराल काल में वालभी युगप्रधान पट्टावली के अनुसार आर्य रेवतीमित्र, आर्य मगू, आर्य धर्म, आर्य भद्रगुप्त आदि कई प्रभावक युगप्रधान आचार्य हुए हैं। उनमे आर्य गुणसुन्दर एक थे । युगप्रधानाचार्यों मे नाचार्य सुहस्ती के बाद गुणसुन्दर का क्रम है।' ____ आचार्य वलिस्सह आचार्य महागिरि के आठ प्रशुख शिष्यो मे से थे। वे काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे। आचार्य महागिरि के स्वर्गवास के बाद उनके स्थान पर गणाचार्य के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। श्रुतमम्पन्न होने के कारण गणाचार्य वलिस्सह ने वाचनाचार्य का दायित्व भी सम्भाला था। ___ आचार्य गुणसुन्दर का आचार्य पदारोहण काल वी० नि० २६१ (वि० पू० १७९) माना गया है। आचार्य सुहस्ती के गण सचालक आचार्य सस्थित का पदारोहण-काल भी यही है। इससे प्रतीत होता है-आचार्य सुहस्ती के बाद स्पष्ट रूप से गणाचार्य, वाचनाचार्य एव युगप्रधानाचार्य की भिन्न-भिन्न परम्परा प्रारम्भ हो गयी थी। आचार्य गुणमुन्दर का स्वर्गवास वी०नि० ३३५ (वि० पू० १३५) मे मान्य हुआ है। ___ आचार्य बलिस्सह के गण की प्रसिद्धि उत्तर बलिस्सह के नाम से है। आचार्य वलिम्सह के ज्येष्ठ गुरुवन्धु बहुल का एक नाम उत्तर था । अत दोनो गुरु के नाम का ममन्वयात्मक रूप उत्तर वलिस्मह नाम मे प्रतिविम्वित है।
आचार्य सृहस्ती के आठ शिप्यो मे प्रथम शिष्य एव आर्य व.. वन्धु होने के कारण यह नाम उनके सम्मान का सूचक भी है। वहुल से आर्य वलिस्सह उत्तर में होने के कारण उत्तर वा सम्भव कल्पना भी है।
स मे नन्दी सूत्र का उल्लेख है पगोत्त बहुलस्म सरिव्वय
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