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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २
आमेर में प्रतिष्ठित हुए थे । यह अपने समय के अच्छे विद्वान थे । भ० देवेन्द्र कीर्ति ने 'समयसार' ग्रन्थ की एक टीका 'ईसरदे' ग्राम में संवत् १७८८ में भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी को बनाकर समाप्त की थी। जैसा कि उसके निम्न पद्यों से प्रकट है :
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चरण है ।
वस्वष्टयुक्त सप्तेन्दुयुते ( १७८८) वर्षे मनोहरे । शुक्ले भाद्रपदे मासे चतुर्दश्यां शुभे तिथौ ॥ १ ईस रदेति सद्ग्रामे टीका पूर्णितामिता । भट्टारक जगत्कर्ते: दुष्कर्महानये शिष्य टीका समयसारस्य
पट्टे देवेन्द्र कीर्तिना ॥२
मनोहर - गिरा कृता । सुगमा तत्वबोधिनी ॥ ३
इस टीका का नाम कवि ने 'तत्वबोधिनी' दिया है । कवि का समय विक्रम की १८वीं शताब्दी का अन्तिम
भ० धर्मचन्द्र
मूलसंघ बलात्कार गण भारतीगच्छ के भट्टारक श्रीभूषण के शिष्य थे । इन्होंने अपनी परम्परा निम्न प्रकार बतलाई है - नेमिचन्द्र, यशः कीर्ति, भानुकीर्ति और श्रीभूषण । इनकी जाति खंडेलवाल और गोत्र सेठी था । यह संवत् १७१२ में पट्ट पर बैठे थे । और उस पर १५ वर्ष तक रहे। इनका पट्ट स्थान महरोठ था । भट्टारक धर्मचन्द्र ने वि० सं० १७२६ में ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीया शुक्रवार के दिन रघुनाथ नामक राजा के राज्य में महाराष्ट्र ग्राम के प्रादिनाथ चैत्यालय में 'गौतम चरित्र' बनाकर समाप्त किया है । कवि का समय १८ वीं शताब्दी है ।
विमलदास
यह अनन्तसेन के शिष्य और वीरग्राम के निवासी थे । तर्कशास्त्र के अच्छे विद्वान थे। इन्होंने प्लवंग सवत्सर की वैशाख शुक्ला अष्टमी बृहस्पतिवार के दिन सप्तभंग तरंगिणी नाम का ग्रंथ तंजोर नगर में पूर्ण किया था । यह ग्रंथ प्रकाशित हो गया है । इनका समय १७वीं शताब्दी अनुमानित किया गया है ।
सप्तभंग तरंगिणी ग्रंथ का विस्तार ८०० श्लाक प्रमाण हैं । उसमें समन्तभद्र, अकलंक, विद्यानन्द माणिक्यनन्दी और प्रभाचन्द्र आदि के ग्रन्थों के उद्धरण देकर सरल भाषा में स्याद्वाद के प्रस्ति नास्ति प्रादि सप्तभंगों का विवेचन किया है, तथा अनेकान्तबाद में प्रतिपक्षियों द्वारा दिए गए संकर, व्यतिकर, विरोध और असभव प्रादि दोषों का निरसन किया है । प्रान्त में लेखक ने बौद्ध, मीमांसक नैयायिक और सांख्यादि मतों में अप्रत्यक्ष रूप से सार पेक्षवादका अवलम्बन किया है, इसको स्पष्ट किया है ।
१. संवत् सत्रासं अर तेतीसं, सावणबदि पंचमी भणि । पदवी भट्टारक अचल विराजित धण दान धण राजतंत्र ॥ २. श्रीमच्छुरिगणाधिपो विजयतां श्रीभूषणाख्यो मुनिः ।। २६६ पट्टे तदीये मुनि धर्मचन्द्रोभूच्छी बलात्कार गरणे प्रधानः । श्री मूलसंघे प्रविराजमानः श्री भारती गच्छ सुदीप्ति भानुः ।। २६७ राजच्छ्री रघुनाथ नामनृपती ग्रामे महाराष्ट्रके ।
नाभेयस्य निकेतनं शुभतरं भाति प्रसोख्याकरम् ।।
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तस्मिन् विक्रमया द्विवाद रस युगाद्रींदु प्रमे वर्षके ।
ज्येष्ठे मासे सिद्वितीये दिवसे कांते हि शुक्रान्विते ॥ २६६
-- भट्टारक पट्टावली
— गौतम चरित्र