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जैन धर्म का प्राचीन इतिहारा-भाग २
(जयपुर) नामक स्थान में की है।
कवि ने इस ग्रन्थ में अन्यच्च अस्माभिरुक्तं शृङ्गार समुद्र काव्ये' वाक्य के साथ अपने शृगार समुद्र काव्य नाम के ग्रन्थ का उल्लेख किया है। इस कृति का अन्वेषण होना चाहिये कि किसी भण्डार में यह ग्रन्थ उपलब्ध है या नहीं । इस ग्रन्थ की ५१ पत्रात्मक एक प्रति पाटौदी भण्डार जयपुर में हैं जिसमें उसका रचना काल संवत् १७०० असोज सुदी १०मी दिया है।
चौथी रचना 'नेमिनरेन्द्र स्तोत्र' है । इसमें २२वें तीर्थकर नेमिनाथ का स्तवन किया गया है । रचना सुन्दर है और अभी अप्रकाशित है। इसमें भी केवलिभक्ति और कवलाहार का निषेध किया गया है । इस पर स्वोपज्ञ टीका भी निहित है। इसे प्रकाश में लाना चाहिये । इसका रचना काल भी ज्ञात नहीं हुआ।
पांचवीं रचना 'सुपेण चरित्र' है। इस ग्रन्थ की ४६ पत्रात्मक एक प्रति आमेर भण्डार में उपलब्ध है, जो सं० १८४२ की लिखी हुई है।
छठवीं रचना 'कर्मस्वरूप वर्णन' है, जिसमें ज्ञानावरणादि कर्मों की मल और उत्तर प्रकृतियों के वर्णन के साथ प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश रूप चार बंधों का स्वरूप निदिप्ट किया है। कवि ने इस ग्रन्थ को संवत १७०७ के चैत महीने के शुक्ल पक्ष की दोइज के दिन समाप्त किया है :
वर्षे तत्व नभोश्वभू परिमिते (१७०७) मासे मघौ सुन्दरे। तत्पक्षे च सितेतरेहनि तथा नाम्ना द्वितीयाह्वये । थी सर्वज्ञ पदांबुजानति गलद ज्ञानावति प्राभवा
स्त्र विद्यश्वरता गता व्यरचयन श्री वादिराजा इमम ।। कदि का समय १७वी शताब्दी का अन्तिम अंश और १८वीं शताब्दी का पूर्वाध है।
कवि बादिराज यह खंडेलवंशी पोमराज श्रेष्ठी के लघु पुत्र थे । ज्येष्ठ पुत्र पंडित जगन्नाथ थे, जो संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड पण्डित थे । इनका गोत्र 'सौगाणी' था। यह तक्षक नगर (वर्तमान टोडा नगर) के निवासी थे । लघु पुत्र का नाम वादिराज था । जो संस्कृत भाषा के अच्छे विद्वान, कवि थे और राजनीति में पटु थे। इनके चार पुत्र थे-रामचन्द्र, लाल जी, नेमिदास और विमलदास । विमलदास के समय 'टोडा' में उपद्रव हुआ था जिसमें एक गुच्छक (मटका) भी लूट गया था। बाद में उसे छुड़ा कर लाये, वह फट गया था, और उसे सम्हाल कर रक्खा गया।
वादिराज ने अपने को उस समय धन जय, प्राशाधर और वाग्भट का पद धारण करने वाला दूसरा वाग्भट बतलाते हुए लिखा है कि राजा राजसिंह दूसरा जयसिंह हैं और तक्षक नगर दूसरा अणहिलपुर है और मैं वादिराज दूसरा वाग्भट हूँ।
धनंजयाशापरवाग्भटानां धत्ते पदं सम्प्रति वादिराजः।
खांडिल्ल वंशोद्भवपोमसूनुजिनोक्ति पीयूष सुतृप्त गात्रः॥३ वादिराज तक्षक नगर के राजा राजसिंह के महामात्य थे। राजसिंह भीमसिंह के पुत्र थे।
कवि की इस समय दो रचनायें उपलब्ध हैं। वाग्भटालंकार की टोका 'कविचन्द्रिका' जिसका पूरा नाम 'वाग्भट्टालंकारावचरि-कवि चन्द्रिका' है। इस टीका को कवि ने राज्य कार्य से प्रवकाश निकाल कर बनाई थी। पौर दूसरी रचना 'ज्ञानलोचन स्तोत्र' नाम का एक स्तोत्र ग्रन्थ । यह स्तोत्र माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थ माला से
१. संवत् १७५१ मगसिर बदी तक्षक नगरे खण्डेलवालान्वये सोगानी गोत्रे साह पोमराज तत्पुत्र साह वादिराजस्तत्पुत्र
चत्वार प्रथम पुत्र रामचन्द्र द्वितीय लाल जी तृतीय नेमिदास, चतुर्थ विमलदास, टोडा में विषो हुओ, जब पाहपोथी लुटी, वहां थे छूडाई फटी तुटी संवारि सुधारि माछी करी, ज्ञानावरणी कर्मक्षयार्थ पुत्रादि पठनाथं शुभं भवत ।
म. प्र. प्रशस्ति सं० भाग १ पृ० ३६ । २. इति मत्वा रत्नत्रयालंकृत विद्यचित्तो विमल पोम श्रेष्ठि कुल भूपो महामात्य पदभृच्छी मदाग्भट महाकविस्ताव
दिष्ट देवतामभीष्टेति ।