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________________ ५३४ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ लिए आचार्य अमृतचन्द्र के समय सार कलश के पद्यों की खंडान्वयी टीका लिखी थी । इस टीका के अध्ययन से अनेक लोग अध्यात्मरस का पान करने को समर्थ हो सके हैं । आपका व्यक्तित्व प्रभावशाली था, और उनके चित्त में जन कल्याण की भावना सदा जागृत रहती थी। उन्होंने अनेक स्थानों पर विहार कर जनता को कल्याणमार्ग का उपदेश दिया था । खासकर राजस्थान के मारवाड़ और मेवाड़ देश में विहार कर जनकल्याण करते हुए यश और प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। उनका विशुद्ध परिणाम और सर्वोपकारिणी बुद्धि इन दोनों गुणों का एकत्र सम्मेलन उनके बौद्धिक जीवन की विशेषता थी। इन्हीं से साहित्य संसार में उनके यश सौरभ का विस्तार हो रहा था। उनकी अध्यात्मकमल मार्तण्ड और पंचाध्यायी कृतियाँ उनके अध्यात्मानुभव ओर स्याद्वादसरणी की निर्देशक हैं। वे जहाँ जाते वहाँ उनका स्वागत होता था। उन्हें प्रागर। में शाहजहां के राज्यकाल में कुछ समय रहने का अवसर मिला है। उन्होंने शाहजहाँ को नजदीक से देखा है । और जम्बूस्वामी चरित में उसकी विशेषताओं का दिग्दर्शन भी कराया है। गुजरात विजय का वर्णन करते हुए लिखा है । उसने 'जजियाकर' छोड़ दिया था और शराब भी बन्द कर दी थी। "मुमोच शुल्कं त्वय जेजियाभिधं, स यावदंभोधर भूधराधरं ॥" २७ "प्रमादमादायजः प्रवर्तते कुधर्मवमेषु यतः प्रमत्तधीः । ततोऽपि मधं तदवद्यकारणं निवारयामास विदांबरः सहि॥" २६ -जंबू स्वामिचरित उस समय आगरा में अकबर बादशाह के खास अधिकारी कृष्णामंगल चौधरी नाम के क्षत्रिय थे, जो ठाकर और अरजानी पुत्र भी कहलाते थे और इन्द्रश्री को प्राप्त थे। उनके आगे 'गढमल्लसाह' नाम के एक वैष्णव धर्मावलम्बी दूसरे अधिकारी थे, जो बड़े परोपकारी थे। कवि ने उन्हें परोपकारार्थ शाश्वती लक्ष्मी प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया है । जम्बू स्वामी चरित की रचना कराने वाले साहू टोडर उन दोनों के खास प्रीतिपात्र थे, उन्हें कवि ने टकसाल के कार्य में दक्ष बतलाया है : "तयोद्धयोः प्रीतिरसामृतात्मकः सभातिनानाटकसार दक्षकः ।" साहू टोडर भटानिकोल (अलीगढ़) के निवासी अग्रवाल थे, इनका गोत्र गर्ग था । यह काष्ठा संघी भट्टारक कुमारसेन की आम्नाय के श्रेष्ठी थे । कवि ने इन्हीं कुमारसेन के पट्ट पर क्रमश: हेमचन्द्र, पद्मनन्दी, यशःकीर्ति और क्षेमकीति का प्रतिष्ठित होना लिखा है। ___ कवि राजमल्ल की निम्न कृतियाँ उपलब्ध हैं-जम्बू स्वामी चरित्र, अध्यात्म-कमल मार्तण्ड, समयसारकलशटीका, लाटी सहिता, छन्दोविद्या और पंचाध्यायी। रचना-परिचय जम्बूस्वामी चरित्र--इसमें अन्तिम केवली जम्बू स्वामी के चरित्र का अंकन किया गया है । इस काव्य में १३ सर्ग और २४०० के लगभग श्लोक हैं। इस ग्रन्थ की रचना कवि ने आगरे में की है, अतः आगरे का वर्णन करना स्वाभाविक है । वहाँ के शासक शाहजहाँ का अच्छा वर्णन किया है और उसके कार्यों को प्रशंसा भी की है। काव्य राग्य प्रधान है। कहीं पर युद्ध का वर्णन करते हए वीर रस पा गया है, कहीं धर्मशास्त्र और नीति का वर्णन है। जम्बूकुमार के साथ उनकी स्त्रियों और विद्युच्चर के जो संवाद हुए हैं वे बहुत ही रोचक हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्व के हैं । इस ग्रन्थ की रचना साहू टोडर के अनुरोध से हुई है जिसने प्रचुर द्रव्य व्यय करके मथुरा में ५१४ स्तूपों का जीर्णोद्धार किया था । और उनकी प्रतिष्ठा चतुर्विध संघ के समक्ष ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष में द्वादशी बुधवार के दिन की थी' । प्रतिष्ठादि कार्य राजमल्ल द्वारा सम्पन्न हुआ था। इस ग्रन्थ की रचना कवि ने सं० १६३२ में २. सवत्सरे गताब्दानां शतानां षोडगंक्रमात्, शुद्धस्त्रिंशद्भिरदश्च साधिकं दधति स्फुटम् ११९ शुभे ज्येष्ठे महामासे शुक्ल पक्षे महोदये, द्वादश्यां बुधवारे स्थाद्घटीनां च नवोपरि, । -चंबू स्वामि चरित्र १,११९२०
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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