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________________ ४६२ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ पुराने मकान के पास एक साधु बैठा है जिसके पास एक काठ का कमंडलु और मोर की पिच्छिका है। सासू ने कहा कोई माधऋषी पाया होगा, यह कह कर वह वहाँ गई और उन्हें 'नमोस्तु' कहकर नमस्कार किया तीन प्रदक्षिणा दी, तब साध ने धर्म वृद्धिरूप प्राशीर्वाद दिया, और वे नगर में आये, पोचा श्रावक के घर उन्होंने पाहार लिया। सकलकीति ने बागड प्रान्त के छोटे बड़े नगरों में विहार किया, जनता को धर्ममार्ग का उपदेश दिया उन्हें जैन धर्म का परिचय दिया और जनसमूह में पाये हुए धार्मिक शैथिल्य को दूर किया और जैनधर्म की ज्योति को उद्योग किया। मं० १४७७ से १४६६ तक के २२ बाईस वर्षीय काल में सकलकोति ने ग्रन्थ रचना, जिन मंदिर-मतियों की प्रतिष्ठा आदि प्रशस्त कार्यों द्वारा जैन धर्म का प्रसार किया। इससे सकलकीति के कार्यो का हति वृत्त सहज ही ज्ञात हो जाता है । प्रतिष्ठाकार्य सकलकीति ने कितनी प्रतिष्ठाएं सम्पन्न कराई । इसका निश्चित प्रमाण बतलाना कठिन है। जब तक सभी स्थानों के मति लेख संग्रह नही किये जाते, तब तक उक्त प्रश्न का सही उत्तर देना संभव नही जंचता । मेरी को बक में ६ प्रतिष्ठानों के मति लेख विद्यमान है मं० १४८०, १४६०', १४६२, १४९६, १४६७ और १४६ के हैं। इनमें सं० १४.०का और १४६र के लेख मुनि कांतिसागर की दायरी तथा हरिसागर के सग्रह के श्वेताम्बरीय मदिरो में प्रतिष्ठित दिगम्बर मतियों के हैं, शेप चारों लेख उदयपुर, डूंगपुर, सूरत, जयपर में प्रतिष्ठित मतियों के हैं। उस काल के अनेक प्रतिष्ठित संघपतियों ने उनकी प्रतिष्ठानों में सहयोग दिया था। गलियाकोट में स०१४ में मं. पति मलराज ने चर्तविशति जिनबिम्ब की स्थापना कराई थी। नागद्रह में संघपति ठाकुरसिह ने बिम्ब प्रतिष्ठित में योग दिया था। सकलकीति रास में उनकी कुछ रचनाओं का उल्लेख किया गया है । ग्रन्थ भंडारों में उनकी जो कतियां उप. । उनमें से किसी में भी उन्होने रचना काल नही दिया। सकलकीति की सभी रचनाए सुन्दर है। हां काव्य की दष्टि मे उनमें रसमलंकार आदि का विशेष वर्णन नही है। सीध सादे शब्दों में कथानक या चरित दिया हया है। यद्यपि उनमें पूर्ववर्ती ग्रन्थों से कोई खास वैशिष्ट्य नही है किन्तु रचना सक्षिप्त और सरल है। उनके सभी गाय प्रकाशन के योग्य है। संस्कृत रचनाएं १. प्रादिपुगण (वृषभनाथ चरित) २. उत्तर पुराण, ३. शांतिनाथ पुराण ४. पार्श्व पुराण ५. वर्धमान पराण ६. मल्लिनाथ चरित्र ७. यशोधर चरित्र ८. धन्यकुमार चरित्र ६. सुकमाल चरित्र १०. सुदर्शन चरित्र जम्ब स्वामि चरित्र १२. श्रीपाल चरित्र १३. मूलाचार प्रदीप १४. सिद्धान्तसारदीपक १५. पुराणसार संग्रह तत्त्वार्थसार दीपक १७ आगमसार १८. समाधिमरणोत्साह दीपक १६. सारचतुविशतिका २०. द्वादशानप्रेक्षा कर्म विपाक २२. अनन्त व्रत पूजोद्यापन २३. अष्टाह्निक पूजा २४. सोलह कारण पूजा २५. गणधर वलय पूजा २६. पंच परमेष्ठी पूजा २७. परमात्मराज स्तोत्र । राजस्थानी गुजराती रचनाएं १. पाराधना प्रति बोधसार २. कर्म चूरव्रतवेलि ३. पार्श्वनाथाष्टक ४. मुक्तावलि गीत ५. सोलह कारण - - - - - - - - १. स. १४६० वर्षे बैशाख सुदी ६ शनी श्री मूलसधे नन्दि संवे बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे श्री कुन्दकुन्दाचार्य भाभी पद्मनन्दी तत्प? श्री शुभचन्द्र तस्य [गुरु] भ्राता जगतत्रय विख्यात मुनि श्री सकलकीर्ति उपदेशात् हुंबड ज्ञातीय ठा० नग्वद आर्या बला तयोः पुत्राः ठा० देवपाल, अर्जुन, भीम्मं कृपा चासण चांपा काटा श्री आदिनाथ प्रतिमेयं (सरत)। २. सं० १४६७ मूलसंघे श्री सकलकीति हुंबड ज्ञातीय शाह कर्ण भार्या भोली सुता सोमा भ्रात्रा मोदी भार्या पासी आदि. नाथं प्रणमति ।
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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