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तेरहवी और चौदहवी शताब्दी के विद्वान, आचार्य और ववि
पं० हरपाल
पं० हरपाल ने अपना कोई परिचय नही दिया। किन्तु अपनी कृति वेद्यशास्त्र में उसका रचना काल वित्र सवत् १३४१) बतलाया है - विक्कम णरव-काने तेरसया गयाइ एयाल (१३४१) सिय पाराट्ठमि मद विज्जयसत्यां य पुण्णां य ।। २५७
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इस वैद्यक गन्थ में २५७ गाथाएं हैं, जिनमें रोग और उनकी चिकित्मा का वर्णन है, ग्रन्थ प्राकृत भाषा मे लिखा गया है । गन्थ की २५५ वी गाथा मे 'जोयसारेहि' वाक्य द्वारा अपनी योग्यसार नामकी रचना का उल्लेख किया है, जो इसके पूर्व रचा गया था। परन्तु वह अभी उपलब्ध नही हुआ । कवि का रामय विक्रम की १४वी शताब्दी का दूसरा चरण है ।
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यह अभयचन्द्रशिय थे । केशव वर्णी ने गोम्मटमार की कनडी बत्ति (जीततत्त्ववोधिका) भट्टारक धर्मभूषण के प्रादेशानुसार क स १२८१ (सन् १५६०) में बनाकर समाप्त की था। कर्नाटक कवित ज्ञात होता है कि उन्होन अमित गति के शावकाचार पर भी कनडी में वृत्ति लिसी भी स्विच जावला कथे' से ज्ञात होता है कि वेश्ववर्णी व शारतय- समयसार, प्रवचनसार पचास्तिकाय पर टीका लिगं । कवि मगराज ने शव का उल्लेख करते हुए उन्हें 'सारत्रय वेदि' विशेषण दिया है जिससे गारतय के ज्ञाता था । उनका समय ईसा की है।
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कवि विबुध श्रीधर
पर से इतना
इन्होने पना कोई परिचय प्रस्तुत नही किया, जिसमे गुरु परम्परा योर गण-गच्छादि का परिचय देना शक्य नही है । कवि की एक मात्र कृति 'भविष्यदत्त' पत्तमी कथा है, जो सतपद्य में रची गई । ग्रन्थ में रचना काल भी नही दिया, जिसमे यह निश्चित करना कठिन है कि प्रस्तुत श्रीधर कम हुए है । हा. गन्थ जर कहा जा सकता है कि इस ग्रन्थ की रचना की १५ शताब्दी के उत कि ग्रन्थ की प्रतिलिपि वि० ० १८८६ की लिखी हुई नया मंदिर धर्मपुरा दिल्ली के शाजार में जल है। ग्रन्थ की रचना लम्वकचक कुल के प्रसिद्ध साहु लक्ष्मण की प्ररणा से हुई था जमा प्रकट है:
ग्रन्थ
श्रीमद्वेदो नयूतायां ? स्थितेन नयशालिना । श्रीलम्बकंतु कानूक - नभो भूषण भानुना । प्रमिद्ध साधुधामेक दनुजेनदयावता । प्रवरोपासका चार-विचाराहित चेतसा ॥१० गुरु देवाना दान-ध्यानाध्ययन कर्मणा। साधना लक्ष्मणाख्येन प्रेरितोभक्ति सयुत ॥ ११ शक्तिहो वक्ष्ये चरित दुरितापह | श्रीमद्भघिप्य दत्तस्य कमलनी तनुभुव ॥ १२
ग्रन्थ में कमल श्री के पुत्र भवि दत्त का जीवन परिचय प्रकित किया गया है।
ग्रन्थ का रचनाकाल ग० १४८६ से बाद का नही हो सकता उससे पूर्ववत है संभवतः यह चादहवी शताब्दी की रचना होना चाहिए ।
१ संवत् १८८६ वर्षे आपाढ वदि ७ गुरुदिने गोपाचलदुर्गे राजाड़गर मिहराज्य प्रवर्तमाने श्रीकाष्ठा सो भ पुरकरग आचा सहरत्रकीति देवास्तपट्टे आचार्य श्री गुग्ण कीर्तिदेवानिच्छिष्य श्री यश की दिवास्तेन निजज्ञानावरणी कर्मक्षयार्थ उद भविष्यदत्त पचमी कथा लिखापित |
- भविष्यदन पचमी कथा लिपि प्रशस्ति