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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग २
समाचार देने वालों को खब पारितोषिक दिया गया और नगर पुत्रोत्पत्ति की खुशी में तोरणों और ध्वज-पंक्तियों से अलंकृत किया गया । सुन्दर वादित्रों की मधुर ध्वनि मे अम्बर गूज उठा। याचक जनों को मनवांछित दान दिया गया। उस समय नगर में दीन दुखियों का प्रायः अभाव-सा था। नगर के सभी नरनारी हर्षातिरेक से आनन्दित थे। धप-घटों में उदगत सुगन्धित धम्र मे नगर मरभित हो रहा था। जिधर जाइये उधर ही बालक महावीर जन्मोत्सव की धम और कलरव सुनाई पड़ रहा था।
देव और इन्द्रों ने भगवान महावीर का जन्मोत्सव मनाया और सुमेरु पर्वत पर ले जाकर इन्द्र ने उनके जन्माभिपंक का महोत्सव धूम-धाम से सम्पन्न किया और बालक को दिव्य वस्त्राभूषणों में अलकृत किया गया।
बालक का जन्म जनता के लिये बड़ा ही मुखप्रद हया था। उनके जन्म के समय ससार के सभी जीवों ने क्षणिक शान्ति का अनुभव किया था। इन्द्र ने श्रावृद्धि के कारण बालक का नाम वर्द्धमान रक्खा । बालक के जातकर्मादि मस्कार किये गए। राजा सिद्धार्थ ने स्वजन-सम्बन्धियों, परिजनों, मित्रों, नगर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों, सरदारों और जातीय जनों को तथा नगरनिवामियों का भोजन, पान, वस्त्र, अलकार और ताम्बूलादि से उचित सन्मान किया।
बाल्य-जीवन
वालक वर्द्धमान बाल्यकाल में ही प्रतिभासम्पन्न, पराक्रमी, वीर, निर्भय और मति-श्रत-अवधि रूप तीन ज्ञान नेत्रों के धारक थे। उनका शरीर अत्यन्त सुन्दर, सम्मोहक एवं ओज तेज से सम्पन्न था। उनकी सौम्य प्राकृति देखते ही बनती थी। उनका मधर मंभापण प्रकृतित: भद्र और लोकहितकारी था। उनका शरीर दूज के चन्द्र के ममान प्रतिदिन बढ़ रहा था।
पा पत्नीय मंजय (जयमेन) और विजय नाम के दो चारण मुनियों को इस बात में भारी सन्देह उत्पन्न हो गया था कि मन्यु के बाद जीव किमी दूसरी पर्याय में जन्म लेता है या नहीं। वर्द्धमान के जन्म के कुछ समय बाद उन चारण मुनियों ने जब वर्द्धमान तीर्थकर को देखा, उसी समय उनका वह सन्देह दूर हो गया। अतएव उन्होंने भक्ति में उनका नाम मन्मति रक्वा' । उनका शरीर अत्यन्त रूपवान और सर्वलक्षणों से भूपित था। वे जन्म-ममय के दम अनिदायों में सम्पन्न थे। एक दिन इन्द्र की सभा में देवों में यह चर्चा चल रही थी कि इस समय सबसे अधिक शक्तिशाली शुरवीर वर्द्धमान हैं। यह सुनकर 'मंगम' नाम का एक देव उनकी परीक्षा करने के लिये पाया। पाते ही उसने देखा कि देदीप्यमान आकार के धारक बालक वर्द्धमान समवयस्क अनेक बालक राजकमारों के माथ एक वृक्ष पर चढे हा क्रीड़ा करने में तत्पर हैं। यह देख संगम देव इन्हें डरावने की इच्छा से एक बड़े सांप
१. (क) सजयम्पार्थमंदेहे मजाने विजयम्य च ।
जन्मानन्तरमेवनमभ्येत्यालोकमात्रतः ॥२८२ तत्संदेहे गते नाभ्यां चारणाभ्यां म्वभक्तितः । प्रस्त्वेप मन्मतिर्देवो भावीति ममुदाहृतः ॥ २८३
-उत्तर पुराण पर्व ७४ (ख) निवृत्तो जयसेनाभ्रचारिणा विजयेन च । नन्वेष मन्मतिर्देव इत्युक्तः प्रमदादसौ॥२६
-त्रिषष्ठि स्मृति शास्त्र