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ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य
१३७ को जानकर 'प्रायज्ञानतिलक' की रचना की है । यह प्रश्न विद्या से सम्बन्ध रखने वाला महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें प्रश्नों के शुभाशुभ फल को जानने और बतलाने की कला का निर्देश है । ग्रन्थ की गाथा संख्या ४१५ है । पौर निम्न २५ प्रकरण हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं-१ प्रायस्वरूप, २ पातविभाग, ३ अायावस्था, ४ ग्रहयोग, ५ पृच्छा कार्यज्ञान, ६ शुभाऽशुभ, ७ लाभाऽलाभ, ८ रोगनिर्देश, ६ कन्या परीक्षण १० भूलक्षण, ११ गर्भपरिज्ञान, १२ विवाह, १३ गमनागमन, १४ परिचयज्ञान, १५ जय-पराजय, १६ वलक्षण, १७ अर्धकाण्ड, १८ नष्ट परिज्ञान, १९ तपोनिर्वाह परिज्ञान, २० जीवितमान, २१ नामाक्षरोद्देश, २२ प्रश्नाक्षर-सख्या, २३ संकीर्ण, २४ काल, २५ पौर चक्रपूजा।
ग्रन्थ पर ग्रन्थकार की बनाई हुई स्वोषज्ञ एक संस्कृत टीका है, उसमे ही ग्रन्थ के विषय की जानकारी होती है। संभवतः ग्रन्थकार पहले प्रजैन रहे हों, बाद में जैन संस्कारों से संस्कृत होकर जैन धर्म में दीक्षित हए हों और दिगम्बराचार्य दामनन्दी के शिष्य हुए हों।
जिन दामनन्दी का उन्होंने अपने को शिष्य बतलाया है वे वही जान पड़ते हैं जिनका श्रवण बेलगोल के लेख नं ५५ (६६) में उल्लेख है, जिन्होंने महावादी विष्णु भट्टको बाद में पराजित किया था-पीस डाला था, इसी से उसे 'विष्णभद्र-घरट्र' लिखा है। ये दामनन्दी शिलालेखानुसार उन प्रभाचन्द्राचार्य के सधर्मा (साथी अथवा गरुभाई। थे जिनके चरण धाराधिपति भोज द्वारा पूजित थे। और जिन्हे महाप्रभावक उन गोपनन्दी प्राचार्य का सधर्मा लिखा है जिन्होंने कुवादि दैत्य धर्जटि को बाद में पराजित किया था। यदि यह कल्पना सही है तो उनके शिष्य का समय १२वीं शताब्दी हो सकता है ।
नाग चन्द्र नागचन्द्र-इनका दूसरा नाव अभिनव पम्प है। भारती कर्णपूर, कविता मनोहर, साहित्य विद्याधर साहित्य सर्वज्ञ, और सूक्ति मुक्तवतंस प्रादि अनेक कवि के नाम अथवा बिग्दथे । यह विद्वान होने के साथ धनवान भी था। इसने विपुल धन लगाकर 'मल्लिनाथ' का एक विशाल जिनमन्दिर बीजापुर में बनवाया था। जो इसका निवास स्थान था। उसी समय नागचन्द्र ने 'मल्लिनाथ पुराण' की रचना की थी। जो १४ आश्वासों में वर्णित है। ग्रन्थ गद्य-पद्य मय चम्पू शैली में लिखा गया है। कथन शैली मनमोहक है और मरम है।
इनके गुरु वक्र गच्छ के विद्वान मेघचन्द्र के सहाध्यायी बालचन्द्र थे । बालचन्द्र नाम के कई मुनि हो गए हैं जिनमें एक पुस्तक गच्छ भुक्त नयकीति के शिष्य थे । और प्राकृत ग्रन्थों के कनडी टीकाकार होने से प्राध्यात्मिक बालचन्द्र कहलाते हैं। ये सन् १९९२ तक जीवित थे। दूसरे बालचन्द्र वक्र गच्छ के थे और वीरनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्ती के गुरु मेघचन्द्र (पूज्यपाद कृत समाधि शतक या समाधितत्र के टीकाकार) के सहाध्यायी थे। यही दूसरे बालचन्द्र के गुरु थे।
कवि की दूसरी कृति रामायण अथवा पम्प रामायण है । यह बहुत ही सुन्दर एवं सरस ग्रन्थ है। इसका सभी अध्ययन करते हैं। कर्नाटक देश में इसका बड़ा प्रचार है। यह ग्रन्थ भी गद्य-पद्य मय है। जिन मौर जिनाक्षर माला ये दो ग्रन्थ भी इनके बनाये हुए कहे जाते हैं परन्तु उनकी रचना साधारण और महत्वहीन होने के कारण उक्त कवि की कृति नहीं मालूम पड़ती। संभव है उनके रचयिता कोई दूसरे ही कवि हों । इनका समय सन् ११०५ (वि० सं० १२४०) के लगभग है।
१. दामनन्दि गुरुणोऽमण्यं अयाण जाणियं गुज्झ ।
तं आयणाणतिलए वोखरिणा भन्नए पयर्ड ॥२॥" २. "श (स) वीयशास्त्रसारेण यत्कृतं जनमंडनं ।
तदाय शान तिलक स्वयं विवियते मया ॥" आयज्ञान तिलक