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नवमी दसवी शताब्दी के आचार्य
भारवि के किरातार्जुनीय में प्रायः मिलती- जलती है । रचना सुन्दर तथा पठनीय है। ग्रन्थ का आधुनिक सम्पादित सरकरण प्रकाशित होना जरूरी है।
दूसरी रचना शान्तिनाथ चरित है जिसमें सोलहवें तीर्थकर शान्तिनाथ का जीवन परिचय अंकित किया गया है । यह ग्रन्थ सोलह मर्गो में विभक्त है। यह ग्रन्थ वर्धमान चरित के बाद बनाया गया है। इस ग्रन्थ पर एक संस्कृत टिप्पणी भी उपलब्ध है । परन्तु मूल और टिप्पण दोनों ही अभी तक अप्रकाशित है । शेष ग्रन्थों का अन्वेषण होना चाहिए ।
विमलचन्द्र मुनीन्द्र
विमलचन्द्र मुनीन्द्र- द- महापण्डल, गुरुओं के गुरु और वादियों का मद भजन करने वाले थे। चूणि मे उनके द्वारा राजा शत्रु भयकर के सभा द्वार पर लगाये गये वादपत्र चलज के नोक निम्न प्रकार है.पत्रं शत्रु भर्यङ्करोरु- भवन-द्वारे सदासञ्चरन् - नाना राज- करीन्द्र-वृन्द-तुरग व्राताकुले स्थापितम । शैवापाशुपतास्तथागतसुतान्का पालिका पिला-नुद्दिश्योद्धत-चेतसा विमलचन्द्राशाम्बरेणादरात् ॥ २६
इनका समय संभवत: विक्रम की १०वी का उत्तरार्ध और ग्यारहवी का पूर्वार्ध सुनिश्चित है ।
महामुनि वक्रग्रीव
यह बड़े भारी
से यह किसी वाद में छहमास पर्यन्त केवल 'ग्रंथ' शब्द की व्याख्या करते रहे। इससे उनकी विद्वत्ता के सहज ही अनुभव हो जाता है। जैसा कि मल्लिपेण प्रशस्ति के निम्न पद्य से स्पष्ट है :
वक्रग्रीव - महामुने - देश- शत-ग्रीवोऽप्यहीन्द्रो यथा - जातं स्तोतुमल वचोबलमसौ कि भग्न वाग्मि व्रजं । योऽसौ शासन देवता - वहुमतोही वक्त्र- वादि-ग्रहग्रीवोऽस्मिन्नथ- शब्द - वाच्य मवदद् मासान्समासेन षट् ॥ १०
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चूंकि मलिषेण प्रति उत्कीर्ण होने का समय शक स० १०५० सन् १९२८ ई० है । वक्ग्रीव मुनि उसमे पूर्व हुए है । अतः इनका समय सभवतः ईसा को दमत्री- ग्यारहवी सदी हा सकता है ।
लाचार्य
लाचार्य - यह द्रविड संघ के अधिपति और द्रविडगण के मुनियों में मुख्य थे । और जिनमार्ग की त्रियाओं का विधिपूर्वक पालन करते थे । पच महाव्रत पंच समिति और तीन गुप्तियों से संरक्षित थे— उनका विधि पूर्वक आचरण करते थे। यह मलयदेश में स्थित 'हेम' ग्राम के निवासी थे । एक वार उनकी शिष्या कमी को, जो समस्त शास्त्रज्ञ और श्रुत देवी के समान विदुषी थी। उसे कर्मवश ब्रह्म राक्षम लग गया । उसकी पीड़ा
१ विमलचन्द्र - मुनीन्द्र गुरोर्गुरु प्रशमिताखिल वादिमद पद । यदि यथावदत्रयन पण्डितेन तदान्वयवदिप्यत वाविभोः ॥ २५ २. द्रविगरण समयमुगो जिनपति मार्गोपचितक्रियापूर्णः । व्रत समितिगुनगुनाचार्यो मुनिर्जयति ।। १६ ३. दक्षिणदेशे मलये हेम ग्रामे मुनि महात्मासीत् । हेलाचार्योनाग्ना द्रविडगरगाधीश्वरो धीमान् ।। तच्छिष्या कमलश्रीः श्रुतदेवी वा समस्त शास्त्रज्ञा । सा ब्रह्मराक्षमेन गृहिता रौद्रेण कर्मवशात् ॥
- ( ज्वालामालिनी कल्प प्रशस्ति)
- ( ज्वालामालिनी कल्प प्रशस्ति || ५ | ६ |