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नवमी-दशवी शताब्दी आचार्य
१६७ शक सं० ७८२ सन् ८६० के ताम्रपत्र से ज्ञाता है कि अमोध वर्ष प्रथम ने अपने राज्य के ५२वें वर्ष में मान्य खेट में जैनाचार्य देवेन्द्र को दान दिया था। अमोघवर्ष ने यह दान अपने अधोनस्थ राज कर्म चारी बडूय की महत्वपूर्व सेवा के उपलक्ष्य में कोलनर में वङ्कय द्वारा स्थापित जिनमन्दिर के लिये देवेन्द्र मूनि को तलेयूर नाम का पूरा गांव और दूसरे गावों की कुछ जमीन प्रदान की थी। यह दान शक स० ७८२ (सन् ८६०- वि० सं० ६१७) में दिया गया था। इससे देवेन्द्र सैद्धान्तिक का समय ईसा की नवमी और विक्रम की दशमी शताब्दी के
ध है। इनके शिष्य कलधौतनन्दी थे । जिनका परिचय नीचे दिया गया है।
कलधौतनन्दि
कलधौतनन्दि-मूलसंघ देशीय गण पुस्तक गच्छ के विद्वान गुणनन्दि के प्रशिष्य और देवेन्द्र सैद्धान्तिक के शिष्य थे। बडे भारी सैद्धान्तिक और पचाक्षरूप उन्नत गज के कं भस्थल को फाड़कर मूक्ताफल प्राप्त करने वाले केशरी सिंह थे। विद्वानों के द्वारा स्तूत और वाक्य रूपी कामिनी के वल्लभ थे।
चंकि देवेन्द्र सैद्धान्तिक को राष्ट्रकट राजा अमोध वर्ष प्रथम ने बङ्कय द्वारा स्थापित जिनालय के लिये 'कोलनर' में 'तलेयूर' नामका ग्राम और दूसरे ग्रामों की कुछ जमीन प्रदान की थी। यह लेख शक सं०७५२ सन ८६० (वि० सं०६१७) का लिखा हया है। अतः कलधौतनन्दि का समय भी ईसा की नवमी (वि. की १०) शताब्दी हो सकता है। (जैन लेख सं० भा०२ पृ० १४१)
वृषभनन्दी सिद्धभूषण सैद्धान्तिक मुनि का उल्लेख प्रायश्चित्तके एक संस्कृत 'ग्रंथ जीतसारसमुच्चय, की प्रशस्ति में किया गया है। इन्हें मान्यखेट में मज कन्दकन्दाचार्य 'नामांकित' जीतोपदेशिका' नाम का ग्रन्थ प्राप्त हआ था।
और जो संभरी स्थान में चले गये थे। ही मुनिराज ने उसकी व्याख्या वृषभनन्दी को की थी तब वषभनन्दी, जो नन्दनन्दी के शिष्य, और रूक्षाचार्य के प्रशिप्य थे। जीतसार समुच्चय ग्रन्थ की रचना संस्कृत पद्यों में की थी। और हर्षनन्दी ने सुन्दर अक्षरों में लिखा था। वृपभनन्दी का यह ग्रन्थ महत्वपूर्ण है, इसमें प्रायश्चिन्त का कथन किया गया है। इसका प्रकाशन होना चाहिये। यह अजमेर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार में मौजूद है। इससे इनका समय नवमी शताब्दी जान पड़ता है।
तच्छिप्यः कलधीतनन्दिमूनिपम्सद्धान्तचक्रेश्वरः, पागवारपरीतधारिरिग कूलव्याप्तोकीर्तीश्वर । पञ्चाक्षोन्मदकुम्भिदलन प्रोन्मुक्त मुन्ना फल - प्रांश प्राञ्चित केसरी बुधनुतो वाक्कामिनी वल्लभ ॥१०
-जन लेख सं० भा० १ पृ० ७२ 5. मान्याखेटे मजूषेक्षी सैद्धान्त मिद्धभूषणः । मुजीर्णा पुस्तिका जैनी प्रार्थ्याप्प मंभरी गतः ॥३४ श्री कोड कुन्दनामाका जीतोपदेशदीपिका । व्याख्याता मदहितार्थेन मयाप्युक्ता यथार्थत ॥३५ सद्गुरोः सदुपशेन कृता वृपभनन्दिना । जीतादिमार संक्षेपो नद्याद्या चदुनारकं ३६ ३. देखो, अनेकान्तवर्ष १४ कि०११०२७ मे प्रगने माहित्य की खोज लेख ।