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स्वर्गीय श्रीमान लाला प्रताप सिंह जो मोटर वालों के संबंध में
दो शब्द
श्रीमान् ला० प्रताप सिंह जी मोटर वालों ने अपने जीवन में धार्मिक तथा सामाजिक कार्य तथा सेवा में अपना अमूल्य समय व्यतीत किया है । उनके बारे में जो कुछ भी लिखा जाय थोड़ा ही है। तो भी यहां सक्षेप में जो धार्मिक कार्य अपने जीवन में लाना जी ने किये हैं। उस सत्कार्यों में उनका नाम हमेगा हमेशा के लिये अमर हो गया है। "न धर्मो धार्मिक विना" धर्म विना धर्मात्मा के नही चलता है। सचमुच में वह धर्मात्मा व्यक्ति थे, आप श्री परम पूज्य १०८ आचार्य देशभूपण महाराज थी का प्रथम चातुर्मास जो दिल्ली में हना था तब मे आपमें महाराज श्री के मंसर्ग से जो धामिक प्रवृत्ति एवं दान में विगेप अभिचि उत्पन्न हुई था। तत्पश्चात् प्रापकी धर्मपत्नी श्रीमती इलायची देवा ने भी विशेष धर्म की अधिचि रग्स अपने पतिदेव के अनुरूप धर्म कार्य भार विगेपरूप में उठाने का प्रयास किया। प्रथम जब महागज के गगर्ग में रहने का अधिक साधन प्राप्त हुआ, उस समय श्री माघनदि प्राचार्य कृत 'शास्त्रमार समुच्चय' मून कन्नड़ ग्रन्थ का अनुवाद हिन्दी में कराके छपवाने का भार आपने स्वयं उठा कर म पूर्ण जैन समाज को शास्त्र दान देकर महान पुण्य का सपादन किया। यह महान् गौरव की बात है। इस ग्रन्थ के द्वारा कितने ही अन्नानी जीव। ने ज्ञान प्राप्त करके अपनी प्रात्मा का कल्याण कर लिया है । आप एक महान् एव प्राचार्य श्री ने अन्यन्य भक्त " । जाचाय था के मुख से निकले हुए वचनों का कनी उल्लघन नहीं करते थे। किसी भी धार्मिक काय को महाराज कहा वह उम पूरा ही करते थे। यह उनकी अखंड साधना थी।
दिल्ली चातुर्मास द्वितीय चातुर्मास का सपूर्ण भार स्वय उठाकर आपने अपने तन, मन, धन में परिपूर्ण सेवा करके महान पुण्य का सपादन किया । चातुर्मास ममाप्त होने के बाद आपने अपने ही व्यय में महाराज का सम्मद शिखर की यात्रा के निमित्त सघ निकाल कर बिहार में जन जेनेतरों को धर्म उपदेश का लाभ दिलाकर उनको मन्मार्ग पर लगान की चेष्टा करते हुए अपने धन का सदुपयोग किया । महान सिद्ध क्षेत्र सम्मेद शिखरजी में भी अपने दान दिया इन प्रवृत्तियों से महत्पुण्य का संपादन किया प्रापक ५ सत्पुत्र है। व भो आपके समान आपके कदम पर चलत है। सबसे बड़े पुत्र रमेशचन्द्र ने भी अतीव धार्मिक अभिरुचि के साय अपने पिताजी के समान अनुगमन किया तथा इनक चार लघु भ्रातानो ने भी पिताजो तथा अपने ज्येष्ठ भ्राता और अपनी पूज्य माता श्रीमती इलायचा दवा की प्राज्ञा का उल्लघन न करते हुए उन्ही की आज्ञानुसार लांकिक, धार्मिक कार्यों का सभाला है। यह अत्यन्त गारव की बात है कि माता, पिता की मेवा करने उनके पदचिन्हों पर चलने वाली सुमतान इस युग में दुर्लभ है। यह महान गौरव की बात है । इसी तरह आगे भी होने वाली संतान भी इन्हो का अनुकरण कर।
कलकत्ता चातुर्मास कलकत्ता के चतुर्मास में वर्षायोग पूर्ण होने पर आप धर्मपत्नी सहित सघ की सेवा में तत्पर रहे। श्री ला० प्रतापसिह जी तथा इसके समधी ला० रामेश्वरदयाल जी इन दोनों ने मिल करके धर्म प्रभावना के साथ संघ की सेवा करके धर्म लाभ उठाया तत्पश्चात् श्री प्रतापसिह जी धर्मपत्नी सहित कलकत्ता से बिहार करने पर श्री गिरिराज सम्मेद शिग्वर जी तक सेवा में तत्पर रहे संघ में किसी भी प्रकार का असतोप व सेवा में कोई भी त्रुटि न पाने दी तथा संघ में किसी प्रकार का भी सेवा की दृष्टि से धन का भी प्रभाव नहीं आने दिया।