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जैनधर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २
मुनिराज सभा के मध्य में विराजमान थे जो बिना वचन बोले अपने शरीर से ही मानो मूर्तिधारी मोक्ष मार्ग का निरूपण कर रहे थे । युक्ति और प्रागम में कुशल थे, परहित का निरूपण करना ही जिनका एक कार्य था, तथा उत्तमोत्तम श्रार्य पुरुष जिनकी सेवा करते थे, ऐसे दिगम्बराचार्य गृद्धपिच्छाचार्य थे ।
मैसूर प्रान्त के नगरताल्लुक के ४६ व शिलालेख में लिखा है
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करता हूँ ।
तत्वार्थ सूत्रकर्तारमुमास्वाति मुनीश्वरम् । श्रुतवलिदेशीयं वन्देऽहं गुणमन्दिरम् ।'
मैं तत्त्वार्थ सूत्र के कर्ता, गुणों के मन्दिर एवं श्रुतकेवली के तुल्य श्री उमास्वाति मुनिराज को नमस्कार
तत्वार्थ सूत्र की मूल प्रतियों के अन्त में प्राप्त होने वाले निम्न पद्य में तत्त्वार्थ सूत्र के कर्ता, गृद्धपिच्छोपलक्षित उमास्वामिया उमास्वाति मुनिराज की वन्दना की गई है ।
'तस्वार्थ सूत्रकर्तारं गृद्धपिच्छोपलक्षितम् ।
वन्दे गणीन्द्र संजात मुमास्वामि ( ति ) मुनीश्वरम् ।।
इस तरह उमास्वाति प्राचार्य, उमास्वामी और गृद्धपिच्छाचार्य नाम से भी लोक में प्रसिद्ध रहे हैं । महा कवि पम्प ( ४१ ) ई० ने अपने आदि पुराण में उमास्वाति को 'श्रार्यनुत गृध्द्रपिच्छाचार्य' लिखा है । इसी तरह चामुण्डराय (वि० सं० १०३५ ) ने अपने त्रिपष्टिलक्षण पुराण में तत्त्वार्थ सूत्रकर्ता को गृद्धपिच्छाचार्य लिखा है ' । आचार्य वादिराज (शक संo १४७ - वि० स० १०८२ ) ने अपने पार्श्वनाथचरित में प्राचार्य गृद्धपिच्छ का निम्न शब्दों में उल्लेख किया है :
तुच्छ गुणसंपातं गृद्धपिच्छं नतोऽस्मि तम् । पक्षी कुर्वन्ति यं भव्या निर्वाणायोत्पतिष्णवः ||
मैं उन गृद्धपिच्छ को नमस्कार करता हूं, जो महान् गुणों के आकर है, जो निर्वाण को उड़कर पहुँचने की इच्छा रखने वाले भव्यों के लिए पंखों का काम देते है । अन्य अनेक उत्तरवर्ती आचार्यों ने भी तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता का गृद्धपिच्छाचार्य रूप से उल्लेख किया है ।
श्रवणबेलगोल के १०५ वे शिलालेख में लिखा है कि- आचार्य उमास्वाति ख्याति प्राप्त विद्वान थे । यतियों के अधिपति उमास्वाति ने तस्वार्थ सूत्र को प्रकट किया है, जो मोक्षमार्ग में उद्यत हुए प्रजाजनों के लिए उत्कृष्ट पाथेय का काम देता है। जिनका दूसरा नाम गृद्धविच्छ है । उनके एक शिष्य बलाकपिच्छ थे, जिनके सूक्ति-रत्न मुक्त्यंगना के मोहन करने के लिए श्राभूषणों का काम देते है ३ ।
इन सब उल्लेखों से स्पष्ट है कि उनका गृद्धमिच्छार्य नाम बहुत प्रसिद्ध था । वे जिनागम के पारगामी विद्वान थे । इसी से तत्त्वार्थसूत्र के टीकाकार समन्तभद्र, पूज्यपाद, अकलक और विद्यानन्द आदि मुनियों ने बड़े ही श्रद्धापूर्ण शब्दों में इनका उल्लेख किया है।
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१. वसुमतिगे नेगले तत्त्वार्थ सूत्रम वेटदगृद्धपिच्छाचार्या ।
जमदि- दिगन्नममुद्रिमिजिनशासनदमतिमेय प्रकटसिदर ॥३
२. विक्रम की १३ वी शताब्दी के विद्वान बालचन्द मुनि ने तस्वार्थ सूत्र की कनड़ी टीका में उमास्वाति नाम के साथ गृद्धपिच्छाचार्य का भी नाम दिया है।
३. श्रीमानुमाम्वातिरयं यतीशस्तत्त्वार्थ सूत्रं प्रकटीचकार । यन्मुक्तिमार्गाचरोद्यतानां पाथेयमर्घ्यं भवति प्रजानाम् ।।१५ तस्यैव शिष्योऽजनि गृद्धपिच्छ द्वितीय संज्ञम्य बलाक पिच्छः । यत्सूक्तिरत्नानि भवन्ति लोके मुक्त्यंगनामोहनमण्डनानि ।। १६