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श्री १०८ प्राचार्यरत्न देशभूषण जी महाराज का
शुभाशीर्वाद
स्वर्गीय प्रात्मा श्री धर्मानुरागी ला० प्रताप सिंह को सुख शांति प्राप्त हो । आपने अपने जीवन धार्मिक और सामाजिक कार्य किये थे, उसको लेखनी द्वारा जितना भी लिखें उतना कम ही है । हमारे दि चातुर्मास में लाला प्रताप सिंह और उनकी धर्मपत्नी इलायची देवी ने संघ की सेवा तन, मन और धन उसका कोई वर्णन नही कर सकते । लाला जी की गुरु के बारे में जो श्रद्धा तथा भक्ति थी वह हृदय से थी । ल ने तन-मन से अपना कर्त्तव्य समझ कर गुरु सेवा और अन्य धार्मिक कार्य अपने हाथों से करके अतुल पुण् कर इह पर का साधन जुटा लिया और सतान को भी अपने अनुकरण करने योग्य धर्म और लौकिक व सा सेवा आदि कर्त्तव्य करने का सस्कार तथा योग्य शिक्षण दिलवा कर मनुष्य के कर्तव्य कर्म पर उनको निर् आप हमेशा के लिए ससार से अलग हुए। इस बात से कुटुम्बा लोगों का हृदय दुःख से द्रवित हुआ परन्तु लीला अत्यन्त विचित्र है उसको कोई ब्रह्म देव भी परिवर्तन नही कर सकता है, फिर मनुष्य क्या कर है । अयोध्या की पचकल्याणक प्रतिष्ठा का भार अपने ऊपर लेकर गुरु की आज्ञानुसार काम करके संपू और जैनेतर जनता के हृदय में धर्म का तथा ग्रहिसा मार्ग का जो प्रभाव गुरु के द्वारा डलवाया और गुरु का अपने द्वारा ही करवाया, यह सब अपने पूर्व जन्म में किया पुण्य का संचय था। आगे भी धर्म कार्य होने क थी, परन्तु कर्म ने उस काम को करने नहीं दिया । तीर्थ क्षेत्र की यात्रा कराकर पुण्य लाभ और प्रभावना अंग इससे इह परलोक का साधन जुटाकर शोघ्र संसार से हमेशा के लिये अलग हुए। इस स्वर्गीय श्री ला० प्रताप' आत्मा को हमेशा के लिए सुख शांति मिल ऐसा श्री भगवान जिनेन्द्र देव से प्रार्थना करते है ।
श्री स्वर्गीय लाला प्रताप सिंह जी के जीवन की झाकी के अनुसार उनकी संतान तथा प्रति सता के मार्ग का अनुकरण करके श्री जिनेन्द्र भगवान के मार्ग को बढावे और अपने हृदय में सतत धर्म जागृति त मार्ग पर चलते हुए समाज सेवा भी अपने कर्त्तव्य अनुसार करते रहें हम उन्हें आशीर्वाद देते हैं कि उस धर्म श्रात्मा को शांति हो । कुटुम्बियों को धर्म में रुचि बढ़े । इति आशीर्वाद ।
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