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जैनधर्म · जीवन और जगत्
पनपी और फली-फूली है, वैसे इसकी समरेखा मे एक ऐसी धारा भी सदा बहती रहती है जो पुनर्जन्म को स्वीकार नही करती तथा पूर्वपक्ष का भरपूर विरोध भी करती है। उसके अनुसार न पूर्व जन्म होता है और न पुनर्जन्म । वर्तमान जीवन हो सत्य है यथार्थ है ।
ये दो धाराए दाश निक क्षेत्र मे बराबर चलती रही हैं । एक को आस्तिक कहा जाता है और दूसरे को नास्तिक । एक है आत्मा को मानने वाली धारा और दूसरी है आत्मा को न मानने वाली धारा । यद्यपि नास्तिक भी आत्मा को-चेतना को सर्वथा अस्वीकार नहीं करते । फिर भी वे उसको मात्र वार्तमानिक मानते हैं, कालिक नही । उनके अभिमत से चेतना स्वतत्र द्रव्य नही है। कुछ ऐसे तत्त्वो या परमाणुओ का सयोग होता है, जिससे एक विशेष प्रकार की शक्ति उत्पन्न होती है । वही चेतना है, जो शरीर के साथ उत्पन्न होती है और शरीर के विनाश के साथ विनष्ट हो जाती है । मृत्यु के समय वे विशेष प्रकार के परमाणु बिखर जाते हैं, उनके साथ चेतना भी बिखर जाती है। जब तक जीवन, तब तक चेतना । जीवन समाप्त, तो चेतना भी समाप्त । उसके बाद कुछ नही बचता । न पहले चेतना, न बाद मे चेतना । न पहले जीवन, न बाद मे जीवन । न पूर्वजन्म, न पुनर्जन्म । जो कुछ है, वह वर्तमान ही है । न अतीत, न भविष्य । इस प्रकार तार्किको ने पुनर्जन्म के सिद्धात को अस्वीकृत कर दिया। इस प्रकार अस्वीकृति के पीछे उनका ठोस तर्क यह है कि शरीर हमारे प्रत्यक्ष है, पर चेतना प्रत्यक्ष नही । यदि चेतना जैसी कोई त्रैकालिक सत्ता होती तो जरूर दृष्टि का विषय बनती । शरीर मे प्रवेश करते और निकलते समय वह अवश्य दिखाई देती । दूसरा तर्क उनका यह है कि यदि पूर्वजन्म का अस्तित्व है तो उसकी स्मृति सवको होनी चाहिए । मृतात्माओ से सपर्क बना रहना चाहिए। किंतु ऐसा होता नही है । यदि कही कुछ घटित होता भी है तो विरल । घटित घटनाओ की प्रामाणिकता असदिग्ध नही, इसलिए जीवन का अतीत और भविष्य तर्क से सिद्ध नही होता।
ताकिको की भाति वैज्ञानिको ने भी लम्बे समय तक जन्मान्तर के सिद्धान्त को स्वोकार नही किया था। इसका कारण यही है कि विज्ञान की पहुच भी भौतिक जगत् तक ही थी। उसके प्रयोग और परीक्षण का केन्द्रविदु पदार्थ या पुद्गल ही रहा । जब से विज्ञान ने सूक्ष्म जगत् के रहस्यो को पकडना प्रारम्भ किया, एक नई क्राति घटित हई। आत्मा को उसने स्वीकार किया या नही, पर भौतिक जगत् मे कुछ अभौतिक तत्त्व भी हैं-यह विश्वास निश्चित वैज्ञानिक क्षेत्र मे पनपा है ।
पुनर्जन्म को स्वीकारने या न स्वीकारने के पीछे मुख्यत दो अवधारणाए काम कर रही हैं -आत्मवादी धारणा और अनात्मवादी अथवा भौतिक