________________
जैनधर्म जीवन और जगत्
पानी की सजीवता भी विज्ञान की कसौटी पर खरी उतर रही है । जैन दर्शन के अनुसार पानी की एक बूद मे असख्य जीव होते हैं । प्रसिद्ध वैज्ञानिक कैप्टिन स्कवेसिवी ने यन्त्र के द्वारा एक लघुजलकण मे ३६४५० जीव गिना दिए हैं ।
विज्ञान सम्मत है ।
अग्नि और वायु की सजीवता भी जैसे मनुष्य, पशु आदि जीवित प्राणी श्वास द्वारा शुद्ध वायु से ऑक्सीजन ग्रहण कर जीवित रहते हैं, वैसे ही अग्नि भी वायु से ऑक्सीजन लेकर ही जीवित रहती है, जलती है । अग्नि को यदि वर्तन से ढक दिया जाए या उसे हवा न मिले तो वह तत्काल बुझ जाती है ।
हवा की सजीवता के सम्बन्ध मे वैज्ञानिक भी कहते हैं कि सुई की नोक टिके उतनी हवा मे लाखो जीव रहते हैं जिन्हे "थेक्सस" कहा जाता है ।
२६
वनस्पति की सजीवता अन्य स्थावर जीव- निकायो की अपेक्षा बहुत स्पष्ट है । "आयारो” मे मनुष्य और वनस्पति जगत् की प्रकृतिगत समानताओ का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया गया है । (आयारो १।७)
विज्ञान जगत् मे सर्वप्रथम सर जगदीशचद्रवसु ने यह बात सिद्ध की थी कि वनस्पति सजीव है । उन्होने यन्त्रो के माध्यम से वनस्पति जगत् की सवेदनशीलता को स्पष्ट दिखलाया था । डॉ० वसु ने दिखाया कि वनस्पति अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियो मे हर्ष, शोक, रूदन आदि करती है । जैन दर्शन की यह मान्यता है कि वनस्पति काय मे आहार, भय, मैथुन और परिग्रह - ये चारो सज्ञाए होती हैं ।
जैसे मनुष्य शरीर आहार से बढता है, उपचित होता है, अन्यथा अपचित हो जाता है, सूख जाता है, वैसे ही वनस्पतिया भी उपचित, अपचित होती हैं।
वैज्ञानिको ने भी सिद्ध कर दिया है कि वनस्पतिया मिट्टी, जल, वायु, प्रकाश आदि से आहार ग्रहण कर अपने तन को पुष्ट करती हैं, आहार के अभाव में वे जीवित नही रह सकती ।
मनुष्य, पशु-पक्षी आदि की भाति वनस्पतिया भी शाकाहारी और मासाहारी होती हैं ।
छुईमुई सकोचशील और भयप्रधान वनस्पति है । वनस्पति जगत् मे मैथुन और परिग्रह की वृत्ति भी होती है । पेड-पौधे भी मनुष्यो की भांति नीद लेते हैं, विश्राम कर थकान मिटाते हैं । वनस्पतिया बहुत सवेदनशील होती हैं । फूल-पत्तिया एक माली और हत्यारे की पहचान अच्छी तरह से कर लेती हैं । आधुनिक सूक्ष्म यन्त्रो के माध्यम से वनस्पति जगत् की सजीवता के सम्बन्ध मे वैज्ञानिको ने अनेक रहस्यो को अनावृत किया है ।