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________________ १८६ ढाल ११ मी ॥ सेजा परिसह इग्यारमोजी नाखी गया नगवंत ॥ निर्दूपण जायगा देखीने जी, रेहेवे शुद्ध साधु महंत ॥ मुनीसर सहेवे परिसह साधुजी ॥१॥ ए अांकणी ॥ उंची नी ची जायगा होवेरे, शीत ने तावमा तेहगरमी खाडा ने खोचरां जी, उद उद आवे ने खेह॥ मु०॥२॥ ऐसी जायगा मिलियां थकारे, न हि करे विखवाद ॥ समनाव राखे साधुजी, ज्यारे घटमां पूरि समाध ॥ मु० ॥ ३॥ रुंखत लें रेहेवे साधजी, देवल सना मकार ॥ घर हा टरी गणतरी हुवे, थानक सेवे अढार ॥ मु०॥ ॥४॥ अढारे जातरा थानक कह्यारे, भाख्या श्री जगनाथ ॥ बकायांरा जीवरी रे, नहि होवे तिण ठामें घात ॥ मु०॥५॥ प्रारंन करी थानक करे रे, करे उक्काय जीवारो अनांग ॥ तिण थानकमें रेहेवे साधुजी रे, गया परिसहा सुं नांग ॥ मु०॥ स०॥६॥ मोल लेवे साधा कारणें रे, नाडे लेवे जाण ॥ तिण थानकमें रेहवे साधुजी रे, नहि पोहोंचे निरवाण ॥१०॥ ॥७॥ची नीची जागा मध्ये रे, खाडा खोचरां
SR No.010224
Book TitleJain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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