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________________ १६७ मनही तेकिणन्याय ॥ श्राजा तथा बाहिरतोजी बडे बंधतोयजीव इणन्याय ॥ २७ मोद आ जामें के वाहिर प्राज्ञा तोकणन्याया। कर्मा सुंमुकावणुंतेसिद्ध आज्ञामांहले इणन्याय.॥२८जी व तेजीवहुवे केअनीवरे ॥जीवतो किन्याय॥ सदाकालशाश्वतो जीवनोजीवरहेशे. इणन्याय जीव ॥ २९ अजीवतेजीवके अजीव, अजीव बेते किणन्याय ॥ सदाकालशाश्वतो अजीयरोत्र जीव रहेशे इणन्याय. ॥३० पुण्यजीव के जीव. अजीव तेकिणन्याय शुनाशुनकर्मना पुदगलसर्वअजीवबेहणन्याय ॥ ३१ पापजीवके अजीव अजीवले. तेकिणन्याय ॥ अशुनकर्मपुद गल अजीव इणन्याय ॥३२ श्रवजीवके अजीच ॥जीवतेकिणन्याय ॥ कर्मवधावधाराप 'रिणाम जीवराइणन्याय ॥३३ संबरजीकेत्र जीव ॥ जीवतेकिणन्याय कर्माराकाटवारापरि पामजीवराखि, इणन्याय ३४ निर्जराजीवनेकेश्र जीव,जीवनेते किणन्याय॥कर्मतोडवारापरिणाम जीवराळे, इणन्याय ॥३५बंधजीव के अजीव बे, अजीवतेकिणन्याय ॥ बंधतोशुनअशुनक
SR No.010224
Book TitleJain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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