SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २ ) दोनों खूबियाँ बहुत बड़ी खूबियाँ हैं । सामाजिक- रक्षा और उन्नति के साथ श्रात्मिक रक्षा और उन्नति के लिये सुविधा देना और किसीके अधिकारको न छीनना, ये दोनों बातें अगर जैनधर्म में न होंगी तो किस धर्म में होंगी ? अगर किसी धर्म में ये दोनों बातें नहीं हैं तो यह इन दोनों बातों का दुर्भाग्य नहीं है, किन्तु उस धर्मका ही दुर्भाग्य है । यह स्मरण रखना चाहिये कि धर्मग्रन्थों में न लिखी होने से अच्छी बातों की क़ीमत नहीं घटती, किन्तु अच्छी बातें न लिखी होने से धर्मग्रन्थों की कीमत घटती है । प्रत्येक स्त्री पुरुष को किशोर अवस्था से लेकर युवा श्रवस्था के अन्त तक विवाह करने का जन्मसिद्ध अधिकार है । पुरुष इस अधिकार का उपयोग मात्रा से अधिक करता रहे और स्त्रियोंको ज़रूरत होने पर भी न करने दे; इतना ही नहीं किन्तु वह अपनी यह नादिरशाही धर्म के नाम पर उसमें भी जैनधर्म के नाम पर -- चलावे, इस अन्धेर का कुछ ठिकाना है ! मुझे तो उनकी निर्लजना पर श्राश्चर्य होता है कि जो पुरुष अपने दो दो चार चार विवाह कर लेने पर भी विधवाओं के पुनर्विवाहको धर्मविरुद्ध कहने की धृष्टता करते हैं। जिस कामदेव के श्रागे वे नङ्गे नाचते हैं, वृद्धावस्थामें भी विवाह करते हैं, एक कसाई की तरह कन्याएँ ख़रीदते हैं, उसी 'काम' के श्राक्रमणसे जब एक युवती विधवा दुखी होती है और अपना विवाह करना चाहती है तो ये क रता और निर्लज्जता के श्रवतार धर्मविरुद्धता का डर दिखलाते हैं ! यह कैसी बेशरमो है ! विधवाविवाह के विरोधी कहते हैं कि पुरुषों को पुनविवाह का अधिकार है और स्त्रियों को नहीं । ऐसे अत्याचार
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy