SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यहाँ हम इस बात का खुलासा कर देना चाहते हैं कि व्यवहारधर्म के बदलने से निश्चय धर्म नहीं बदलता। दवाइयाँ हज़ागें तरह की होती है और उन सबसे बीमार आदमी निगेग बनाया जाता है । रोगियों की परिस्थिति के अनुसार ही दवाई की व्यवस्था है । एक रोगी के लिये जो दवाई है दूसरे को वही विष हो सकता है। एक के लिये जो विष है, दूसरे को वही दवाई हो सकती है। प्रत्येक रोगी के लिये औषध का विचार जुदा जुदा करना पड़ता है। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के लिये व्यवहारधर्म जुदा जुदा है। सभी रोग के लिये एक ही तरह की दवाई बनाने वाला वैद्य जितना मूर्ख है उससे भी ज्यादा मूर्ख वह है जो सभी व्यक्तियों के लिये सभी समय के लिये एक ही मा व्यवहार धर्म बतलाता है। इस पर थोडामा विवेचन हमने ग्यारहवे प्रश्न के उत्तर में भी किया है। विधवा-विवाह सं सम्यक्त्व और चारित्र में कोई दूषण नहीं पाता है इस बात को भी हम विस्तार से पहिले कहचुके हैं । विधवा-विवाह मे चारित्र में उतनी ही अटी होती है जितनी कि कुमारी विवाह से। अब इस विषय को दुहराना व्यर्थ है। उपसंहार ३१ प्रश्नों का उत्तर हमने संक्षेप में दिया है फिर भी लेख बढ़ गया है। इस विषय में और भी तर्क हो सकता है जिसका उत्तर सरल है । विचारयोग्य कुछ बातें रहगई है। उन सबके उल्लेख से लेख बढ़ जावेगा इसलिये उन्हें छोड़ दिया जाता है। इति
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy