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________________ और वैधव्यदीक्षा का उस समय सद्भाव माना जा सकता है तो विधवाविवाह के चित्रण के अभाव में भी उस समय विधवाविवाह का सद्भाव माना जा सकता है, क्योंकि जो ग्विाज धर्मशास्त्र के अनुकूल है उसके प्रचार में चतुर्थकाल के धार्मिक और उदार लोग बाधा डालते होंगे इसकी तो म्वप्न में भी कल्पना नहीं की जा सकती। । प्रथामानुयोग शान कोई दिनचर्या लि वन की डायरी नहीं। उनमें उन्हां घटनाओं का उल्लेख है जिनका सम्बन्ध शुभाशुभ कर्मों से है। वर्णन को सरम बनाने के लिये उनने मरस रचना अवश्य को है लेकिन अनावश्यक चित्रण नहीं किया, बल्कि अनेक आवश्यक चित्रण भी रह गये हैं। दीक्षान्वय क्रिया का जैसा विधान आदिपुराण में पाया जाता है, उसका चित्रण किसी पात्र के चरित्र में नहीं किया, जब कि सैकड़ा अजैनों ने जैन धर्म की दीक्षा ली है । इस लिये क्या यह कहा जा सकता है कि उस समय दीक्षान्वय की वह विधि चालू नहीं थी ? यही बात विधवाविवाह के बारे में भी है। विवाह-विधान के आठ भेद बतलाये हैं, परन्तु प्रथमा. नुयोग के चरित्रों में दो एक विधानों के अतिरिक्त और कोई विधान नहीं मिलते । लेकिन इससे यह नहीं कहा जा सकता कि उस समय वैसे विधान चालू नहीं थे। इससे यह बात सिद्ध होती है कि विधवाविवाह कोई ऐसी महत्वपूर्ण घटना नहीं थी जिसका चित्रण किया जाता। यहाँ शंका हो सकती है कि 'कुमारी-विवाह भी ऐसी क्या महत्वपूर्ण घटना थी जिसका चित्रण किया गया ?' इसका उत्तर थोड़े में यही दिया जा सकता है कि प्रथमानुयोग
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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