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________________ हार भी सब जगह होता है । यह सब धर्मानुकूल है । इसका खुलासा २३ और २४ वे प्रश्न के उत्तर में हो चुका है। प्रश्न (२६)-व्यभिचार से पैदा हुई सन्तान मुनिदीक्षा ले सकती है या नहीं ? यदि नहीं तो व्यभिचारिणी का पुत्र सुदृष्टि सुनार उसी भव से मोक्ष क्यों गया ? क्या यह कथा मिथ्या है? उत्तर-यदि कथा मिथ्या भी हो तो इससे यह मालूम होता है कि जिन जिन श्राचार्यों ने यह कथा लिखी है उन्हें व्यभिचारजात सन्तान को मुनि दीक्षा लेने का अधिकार स्त्रीकार था । यदि कथा सत्य हो तो कहना ही क्या है ? मनुष्य किसी भी तरह कहीं भी पैदा हुआ हो, वैराग्य उत्पन्न होने पर उसे मुनिदीक्षा लेने का अधिकार है । इसमें तो सन्देह नहीं कि सुदृष्टि सुनार था, क्योंकि दोनों भवों में श्राभूषण बनानेका धंधा करता था, जोकि सुनार का काम है । रत्नविज्ञानिक शब्द से इतना ही मालूम होता है कि वह रत्नों के जड़ने के काम में बड़ा होशियार था: व्यभिचार जातता तो स्पष्ट ही है, क्योंकि जिस समय वह मरा और अपनी स्त्री के ही गर्भ में आया उसके पहिले ही उसको स्त्री व्यभिचारणी हो चुकी थी और जार से ही उसने सुदृष्टि की हत्या करवाई थी। वह अपने वीर्य से ही पैदा हुश्रा हो, परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि वीर्य व्यभिचारिणी के गर्भ में डाला गया था। इतने पर भी जब कोई दोष नहीं है तो विधवा-विवाह में क्या दोष है ? विधवा विवाह से जो संतान पैदा होगी वह भी तो एक ही वीर्य से पैदा होगी। प्रश्न (२७)-वर्णिकाचार के ग्यारहवें अध्याय में
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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