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________________ न दिया तो जो खगवियां जैन समाज में हैं वे कभी भी दूर न होंगी-असदाचार, गुप्त पाप बढ़ता जायगा और समाज की मंग्च्या घटनी जायगी और यदि उन्होंने इस सच्चे सिद्धांत पर ध्यान दिया तो कुमागे का, विधुगें का नथा विधवाओं का इन सब का जीवन मंतोप रूप हो जायगा- सन्तानों की विशेष उत्पत्ति होगी, ममाज की घटी अवश्य दर होगी और जैन समाज मग्न में बचंगी क्योंकि धर्म धमात्मा के आश्रय रहता है इसमें यदि समाज जीता रहंगा नो धर्म भी देखने में आयगा। इलिये जैन धर्म की स्थिति और जैन समाज की रक्षा के लिये विधवाओं को अपना भला या वग स्वयं विचारना चाहिये और उनके संरक्षकों को भ्रम दर करके उनके जीवन को मंतापी व आन यान हित बनाना चाहिये स्त्री समाज विद्या के विना अपने हकों को बिलकुल भल बैठी है । उसको पराधीनता की बड़ी ने बिलकुल गलाम सा बना दिया है। उनकी दशा उन पक्षियों के अनमार है जिनको पिंजरों में वहुन काल बन्द ग्क्वा जावे-पीछे यदि छोड़ा भी जाये तो वे फिर पिंजरे में बन्द होने को आजाते हैं । इमी तरह स्त्रियों को गलामी में रहने की आदत पड़ गई है वे इस आदत को छोड़ नहीं सकती है यही उनको आपत्तियों में पड़ने का कारण है। हम यहां स्त्री समाज को उसके कर्तव्य बताते हैं :
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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