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मर
बिना किसी संतान को पैदा किये हुये काम विधवायें रहकर अपना जिस तिस प्रकार जन्म काटती है । समाज में बाल विवाहों की भी कमी नहीं है। निदान १५-१६ वर्ष के बालक ११या१२ वर्षकी कन्या विवाह दिये जाते है । देवयोग से यदि यह बालक मर जाता है तो ये बाल भी बेकार अपनी जिन्दगी वित है। ये भी बिना संतान के पैदा किये हुये मर जाता है । उधर कुमारी कन्याएं यही कम है तिस पर उनमें से बहुत सी कन्यायों को विचुर पुरुष विवाह लेते है। कुमारां की संख्या भी अधिक है इसलिये अधिक कुमारे बिन विवाह तथा बिना किसी सतान को पैदा किये जाते हैं । सन १६०९ की रिपोर्ट बताती है कि २० से ७० वर्ष व ऊपर तक के कुमारे ६२२८६ है । जिस जानि में ७० हजार कुष्णरे विन विवाह रह जाये उस जाति की संतान अवश्य कम होगी इसमें कोई संदेह नही बद्धिमान जैन भाई तथा वहिन विचार सकते है कि जैन समाज की संख्या को स्थिर रखने वाला समाज के बालक व बालिकायें है। जब इनकी उत्पत्ति कम होगी तब अवश्य संख्या घटेगी जो बुरी दशा मर्दुम शमारी की रिपोर्ट से झलकती है वही वरी दशा प्रत्यक्ष जैनियों की आबादी को देखने से झलकती है। हम जब अपने भ्रमण में किसी स्थान की दशा को जांचने लगते है तो
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